नई दिल्ली.देवभूमि हिमाचल आज 47 साल को हो गया है. 25 जनवारी 1971 को देश के मानचित्र पर 18वें राज्य के रू में इसका अस्तित्व सामने आया था. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला आकर इतिहासिक रिज मैदान पर भारी बर्फबारी के बीच हिमाचल वासियों के सामने हिमाचल प्रदेश का 18 वें राज्य के रूप में उद्घाटन किया. लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि हिमाचल का नाम सत्यदेव बुशहरी ने दिया था.
26 जनवरी 1948 को राजा बघाट दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में सोलन में बैठक हुई थी, जिसमें पहाडी रियासतों के जनप्रतिनिधि शामिल हुए थे. इसी बैठक में हिमाचल केा अलग राज्य बनाने की मांग उठी थी. 1971 में इस पहाड़ी राज्य की स्थापना के बाद से ही इस राज्य में सत्ता के लिए दो दलों में ही संघर्ष रहा है.
1972 में राज्य में पहली बार हुए विधानसभा चुनावों में डॉक्टर यशवंत सिंह परमार के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में आई थी. उस समय तो कांग्रेस को छोड़कर किसी भी अन्य राजनीतिक दल का खास प्रभाव नहीं था. उनके बाद ठाकुर राम लाल मुख्यमंत्री बने और प्रदेश बागडोर संभाली. उसके बाद 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में पूरे देश की ही तरह हिमाचल में भी कांग्रेस का सफ़ाया हो गया. विधानसभा में कुल 68 सीटों में से जनता पार्टी 60 सीटें जीतकर भारी बहुमत से सत्ता में आई थी, और शांता कुमार राज्य के पहले गैर-कांग्रेस मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन उनकी सरकार केवल ढाई वर्ष ही चल पाई क्योंकि 1980 में लोकसभा के मध्यावधि चुनावों के बाद केंद्र में कांग्रेस के सत्तासीन होने का सीधा असर हिमाचल पर पड़ा. जनता पार्टी के 30 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए और रामलाल बिना चुनाव के ही दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए. लगभग उसी समय राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के गठन के साथ ही हिमाचल में जनता पार्टी के अधिकतर नेता भाजपा में शामिल हो गए.
1982 में राज्य विधानसभा के चुनाव कांग्रेस ने रामलाल और भाजपा ने शांता कुमार के नेतृत्व में लड़े. भाजपा को 31, कांग्रेस को 29 और निर्दलीय उम्मीदवारों को आठ स्थानों पर सफलता मिली. लेकिन सबसे बड़े दल के रुप में उभरने के बावजूद भी भाजपा राज्य में सरकार नहीं बना सकी क्योंकि पाँच निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस का समर्थन किया. रामलाल तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री तो बने लेकिन वे ज़्यादा देर इस पद पर बने नहीं रह सके. उनके बेटे और अन्य संबंधियों के नाम कथित तौर पर बड़े पैमाने पर हरे पेड़ काटने के मामले में सामने आए और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. रामलाल को आँध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया और तब तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे वीरभद्र सिंह को पार्टी आला कमान ने राज्य के मुख्यमंत्री पद की ज़िम्मेदारी सौंपी.
सहानुभूति लहर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद लोकसभा के आम चुनावों में कांग्रेस को केंद्र में सरकार बनाने में सफलता हासिल हुई. इसके दो महीने बाद ही वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस के पक्ष में माहौल देखते हुए राज्य विधानसभा को भंग कर चुनाव करवा लिए. उस समय की विधानसभा के अभी ढाई वर्ष बचे थे, लेकिन कांग्रेस ने विपक्ष को हैरान करते हुए अचानक चुनाव बुलाए थे. राष्ट्रव्यापी सहानुभूति लहर के चलते मार्च 1985 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 68 में से 58 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर विपक्षी भाजपा की कमर तोड़ दी. यहाँ तक कि भाजपा नेता शांता कुमार ख़ुद भी चुनाव हार गए. लेकिन 1990 में पूरे देश में चल रही कांग्रेस विरोधी लहर का स्पष्ट असर हिमाचल में भी देखने को मिला. इन चुनावों में कांग्रेस का सफ़ाया हुआ और भारतीय जनता पार्टी दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आई. कांग्रेस केवल आठ सीटें ही जीत पाई जबकि भाजपा को 46 और उसकी गठबंधन सहयोगी जनता दल को 11 सीटें मिलीं. अभी भाजपा सरकार केवल अपना आधा ही कार्यकाल पूरा कर पाई थी कि छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के कारण केंद्र की कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकारों को बरख़ास्त कर दिया.
लगभग नौ महीने के राष्ट्रपति शासन के बाद नवम्बर 1993 में हुए राज्य विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस ने एक बार फिर भारी बहुमत से सत्ता में वापिसी की. इन चुनावों में कांग्रेस ने 53 सीटें जीतीं जबकि भाजपा को मात्र आठ सीटों पर संतोष करना पड़ा था. वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए. वर्ष 1998 के चुनाव में सता भाजपा के हाथ चली गई और प्रेम कुमार धूमल को पहली बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री फिर से वीरभद्र सिंह को मनाया गया.वर्ष 2007 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल बने. नवम्बर २०१२ में हिमाचल प्रदेश की हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए हुआ चुनाव था. कांग्रेस ने इस चुनाव में जीत हासिल की. सीटो में से सीट जीत कर कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए. लगभगतीन महीना पहले 9 नवंबर को हिमाचल विधानसभा के चुनाव कराए गए, जिसका परिणाम 18 दिसंबर को आया था. इस चुनाव में 68 में से 44 सीटें जीतकर बीजेपी ने भारी बहुमत प्राप्त किया. 27 दिसंबर को जयराम ठाकुर ने हिमाचल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.