शाहपुर. लाहड़ी गांव में भूस्खलन के मलबे में दो गोशालाएं दफन हो चुकी हैं. वहीं 13 घरों का मलबे में दब जाने का डर बना हुआ है. हालांकि अभी मानसून नहीं आया है. पहली बारिश में ही भूस्खलन से आने वाले तांडव का आभास हो रहा है. मानसून के आने से पहले हालात बदतर हो रहे हैं. सरकार मानती है कि इन किसानों की सुरक्षा दूसरे जगह पर बसा कर ही की जा सकती है. लेकिन लेटलतीफी और वादाखिलाफी के बाद सवाल सरकार के मंशा पर भी है?
यह पहली बार नहीं जब लाहड़ी गांव पर यह खतरा आया हो. पिछले साल स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले मलबे ने एक गोशाला को लील लिया था. इस हादसे में तीन मवेशी धंस कर मर गये.
हादसे के बाद राजनेताओं की घोषणाओं का दौर शुरू हुआ. लेकिन किसानों को मिला बहुत थोड़ा. धरातल पर मात्र एक परिवार को 10 हजार रूपये की राहत दी गई. बाकी 29 परिवारों को एक-एक तिरपाल थमा दिया गया. सरकार ने विधानसभा में इन्हें दूसरे जगह बसाने की घोषणा की. अधिकारियों की लालफीताशाही कही जाए या सरकार की टरकाने वाली मंशा, किसानों को जमीन अबतक मुअस्सर नहीं हुआा.
अब भी ये निर्धन किसान टुकुर-टुकुर अपने घरौंदे को मलबे के ढेर में तब्दील होते देखने पर मजबूर हैं. घर का सामान सामुदायिक भवन में रख दिया गया है. पीड़ित परिवारों की सूची बनाने का काम अबतक खत्म नहीं हुआ. पटवारी अब भी इसे पूरा करने में लगे हैं.
सरकार के वादखिलाफी के बाद किसानों ने उम्मीद छोड़ दिया है. अब वे जमीन, घर, पैसे नहीं मांग रहे. उन्होनें सरकार से जहर मांगना शुरू कर दिया है.
किसान नेता राणा ओंकार सरकार की नीतियों से गुस्से में हैं. वे सरकार से किसानों की दिक्कत जल्द-से-जल्द दूर करने की बात करते हैं. वे कहते हैं ” अन्य राज्यों की तरह हिमाचल के किसान भी अब शांत बैठने वाले नहीं.”