शिमला. हिमाचल प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक तारादेवी मंदिर राजधानी से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. चोटी पर बने इस मंदिर की कहानी बड़ी ही रोचक है. कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण राजा भूपेंद्र सेन ने करवाया था. भूपेंद्र सेन इस रियासत के सबसे ताकतवार राजाओं में से एक थे. कथाओं के अनुसार एक बार राजा शिकार के लिए तारादेवी के घने जंगलों में चले गए. ऐसा माना जाता था कि इस जंगल में मां तारा वास करती है.
पहली कहानी
शिकार के दौरान राजा को मां तारा ने दर्शन दिए. मां ने इच्छा जताई कि वह इसी जंगल की पहाड़ी पर बसना चाहती हैं ताकि भक्त आसानी से यहां आकर उनके दर्शन कर सके. राजा ने भी हामी भर दी. राजा ने अपनी आधी से ज्यादा जमीन मंदिर निर्माण के लिए सौंप दी. यहां मंदिर निर्माण का काम शुरू हो गया. कुछ समय बाद जब मां का मंदिर तैयार हुआ तो राजा ने लकड़ी की मूर्ति के स्वरूप में यहां माता को स्थापित कर दिया. कहते हैं भूपेंद्र सेन के बाद मां ने उनके वशंज बलबीर सेन को भी दर्शन दिए. सेन ने यहां अष्टधातु की मूर्ति स्थापित की और मंदिर का निर्माण आगे बढ़ाया.
दूसरी कहानी
एक दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है कि 250 साल पहले मां तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया था. शिमला में सेन काल का एक शासक मां तारा की मूर्ति बंगाल से यहां लाया था. मां तारा भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं. यही वजह है कि हर साल यहां लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल से शिमला आने वाले पर्यटक इस मंदिर में जाना नहीं भूलते. लोगों की ऐसी मानता है कि मंदिर के साथ करीब दो किलोमीटर नीचे जंगल में शिवबावड़ी भी है जहां बावड़ी में पैसे डालने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.