एक अनुमान के मुताबिक़ भारत के लगभग तीन चौथाई लोगों की सुबह शुरू होती है एक प्याली चाय से. बहुत कम लोगों को पता होगा कि अब घर-घर में पैठ बना चुके इस पेय से लगभग 200 साल पहले तक बहुत कम लोग वाकिफ थे और हिन्दुस्तानियों के दिल में अपनी जगह बनाने के लिए इसे काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.
कैसे हुआ प्रसार
चाय का उद्गम चीन में हुआ बताया जाता है, जहां पहले इसे चिकित्सा के काम में इस्तेमाल किया जाता है पर धीरे-धीरे यह आम लोगों में लोकप्रिय होती गयी. यहीं से चाय यूरोप और एशिया के अन्य देशों में पहुंची. सन 1830 तक एशिया में चाय पर चीन का विशेषाधिकार बना हुआ था जहां चाय उत्पादन की तकनीकों को राजकीय सीक्रेट का दर्जा हासिल था. चीनी चाय के बड़े आयातक अंग्रेजों को लगने लगा कि वे चाय के लिए कुछ ज्यादा ही दाम चुका रहे हैं और इसलिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के असम (पुराना असम जिसमें आसपास के पहाड़ी राज्य भी शामिल थे) वाले इलाकों में चाय की खेती करने की सोची.
इस क्षेत्र में स्थानीय सिंगपो जनजाति के लोग चाय जैसे ही किसी पेय को पीते थे लेकिन अंग्रेजों को वो खास पसंद नहीं आया. अंत में ईस्ट इंडिया कंपनी के दो कर्मचारियों को चीन से अच्छी प्रजाति के चाय के पौधे और चाय उत्पादन के कुछ जानकार मजदूरों को लाने के गुप्त मिशन पर भेजा गया. यूं आये चाय के पौधों की खेती दार्जीलिंग और असम के इलाकों में शुरू हुई और शुरुवाती दिक्कतों के बाद भारत की चाय ब्रिटेन में पसंद की जाने लगी, जिससे यहां के बागान मुनाफा कमाने लगे.
फैक्ट्रियों-स्टेशनों के बाहर प्रचार के लिए लगाईं चाय की दुकानें
1881 में बने भारतीय चाय बोर्ड ने इसे भारतीय जनता में लोकप्रिय बनाने के लिए काफी कोशिशें की. 1919 में पहले विश्व युद्ध के समय से ही खान और फैक्ट्री मजदूरों में इसे प्रचारित करने के लिए फक्ट्रियों और कारखानों के पास चाय के स्टाल लगाये गए. धीरे-धीरे चाय की दुकानें रेलवे स्टेशनों पर भी दिखने लगी. चूंकि आज़ादी के बाद तक देश में चाय की खपत बहुत ज्यादा नहीं बढ़ी थी इसलिए 1955 के बाद टी बोर्ड ने एक आक्रामक प्रचार अभियान शुरू किया को काफी सफल रहा और चाय का स्वाद भारतीय जबान पर चढ़ गया.
यहां भी उगाते हैं चाय
बंगाल के दार्जीलिंग और असम के अलावा 1850 के आसपास हिमाचल के कांगड़ा जिले में भी चाय की खेती शुरू करने की कोशिशें हुई जो आखिरकार सफल रहीं. ‘कांगड़ा टी’ के नाम से मशहूर इस ब्रांड की चाय की मांग धीरे-धीरे अफगानिस्तान तक से आने लगी. आज भी कांगड़ा के इलाके की चाय की देश-विदेश में काफी मांग है. इसके अलावा बंगाल से सटे बिहार के किशनगंज जिले में भी छोटे-मोटे पैमाने पर चाय उगाई जाती है. चाय उत्पादन का एक और बड़ा केंद्र है तमिलनाडु की सीमा पर बसा केरल का मुन्नार, जहां की चाय ‘नीलगिरी टी’ के नाम से प्रसिद्ध है.
कांगड़ा टी के बारे में जानने के लिए देखें विडियो :
कई प्रकार की होती है चाय
कमेल्लिया सिनेनसिस के नाम से पहचाने जाने वाले चाय के पौधे की कई उप-प्रजातियां भी होती हैं. मौसम और जगह के प्रभाव के चलते उनके स्वाद और रंग में भी फर्क पड़ता है. उदाहरण के लिए हिमाचल में मूलतः ग्रीन टी उगाई जाती है जो हल्का पीला रंग छोडती है जबकि असम-दार्जिलिंग के इलाके में CTC की अच्छी पैदावार होती है. कट-ट्विस्ट-कर्ल विधि से बनने वाली यह CTC चाय ही है गहरा कत्थई रंग छोडती है और दूध-चीनी के साथ मिलकर भारत का सबसे लोकप्रिय पेय तैयार करती है जो पूरब से पश्चिम, या उत्तर से दक्षिण हर राज्य में उपलब्ध है.
2005 में चाय और चाय उगाने वाले मजदूरों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिहाज से शुरू किया गया अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस हर साल 15 दिसंबर को मनाया जाता है. तो आइये, इस चाय दिवस पर एक प्याला चाय का लुत्फ़ लेते-लेते पढ़िए कहानी इसके इतिहास की.