नई दिल्ली: समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी है. भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच द्वारा मामले की सुनवाई की जा रही है. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में राज्यों को भी पार्टी बनाया जाए.
ये संसद के क्षेत्राधिकार का मामला: केंद्र
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस केस में हमारी प्रारंभिक आपत्ति है. ये संसद के क्षेत्राधिकार का मामला है. सुप्रीम कोर्ट से तुषार मेहता ने कहा कि सवाल ये है कि क्या अदालत खुद इस मामले पर फैसला कर सकती है ? ये याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं. केंद्र को पहले सुना जाना चाहिए क्योंकि वह अदालत के समक्ष 20 याचिकाओं के सुनवाई योग्य होने का विरोध कर रहा है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये मौलिक अधिकारों का मामला है. सरकार हर मामले में ही ये कहती है. अदालत को सुनवाई के लिए बढ़ना चाहिए.
केंद्र सरकार ‘पक्ष’ में नहीं
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आने वाली पीढ़ियां ये ना कहें कि हमने इस मुद्दे को अदालत के ध्यान में नहीं दिलाया. हर राज्य में शादी को लेकर अलग नियम हैं. राज्य के विचार को ध्यान में रखा जाना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल केंद्र का अनुरोध ठुकरा दिया है और केंद्र की पहले मामले के सुनवाई योग्य होने पर सुनवाई की मांग नहीं मानी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र की बात बाद में सुनेंगे.
याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी की दलीलें
याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी ने अपनी दलील 377 को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने के मुद्दे से शुरू की. गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार, निजता का सम्मान और अपनी इच्छा से जीवन जीने की दलीलें दीं. घरेलू हिंसा और परिवार और विरासत को लेकर भी कोर्ट की गाइड लाइन स्पष्ट है. हमें ये घोषणा कर देनी चाहिए ताकि समाज और सरकार इस तरह के विवाह को मान्यता दें.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा- सरकार और समाज की मान्यता के बाद भी कई कानूनी सवालों के जवाब नहीं मिल रहे, क्योंकि वो व्यवहारिक सवाल है. रोहतगी ने कहा कि विवाह के बहुत से प्रकार हैं, लेकिन समय-समय पर इसमें सुधारात्मक बदलाव भी हुए हैं. बहु विवाह, अस्थाई विवाह जैसी चीजें अब इतिहास का हिस्सा हैं. 1905 में हिंदू विवाह अधिनियम आया. इन कानूनी और संवैधानिक बदलावों में आईपीसी की धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर निकलने के दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी हैं.
रोहतगी ने कहा कि इसमें आ रही कानूनी अड़चनों के मद्देनजर कानून में पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी यानी स्पाउस शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद-14 के मुताबिक समानता के अधिकार की भी रक्षा होती रहेगी.
याचिकाकर्ता की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने हमेशा अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक जोड़ों के अधिकार की रक्षा की है. समलैंगिक विवाह की गैर-मान्यता भेदभाव के बराबर थी, जो LGBTQIA+ जोड़ों की गरिमा और आत्म-पूर्ति की जड़ पर आघात करती थी.- LGBTQ नागरिक देश की जनसंख्या का 7 से 8% हिस्सा हैं.
समलैंगिक संबंधों को समाज ने स्वीकार किया है: CJI
CJI ने कहा कि हमारे समाज ने समलैंगिक संबंधों को स्वीकार किया है. पिछले पांच सालों में चीजें बदली हैं. एक स्वीकृति है, जो शामिल है. हम इसके प्रति सचेत हैं. नवतेज के समय और अब हमारे समाज को अधिक स्वीकृति मिली है. इसे हमारे विश्वविद्यालयों में स्वीकृति मिली है.
CJI ने कहा कि हमें वृद्धिशील तरीके से अपनी व्याख्यात्मक शक्ति का प्रयोग करना होगा और कानून विकसित हो रहे हैं, इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि अदालत इसे व्याख्या के तरीके से करे और हम वर्तमान के लिए एक कैनवास को कवर कर सकते हैं. अपने आप को सीमित रखें और फिर संसद को समाज के विकास का जवाब देने की अनुमति दें. हम इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते कि संसद वास्तव में यहां प्रासंगिक है. इसमें विधायी प्रक्रिया भी शामिल है. साथ ही नवतेज जौहर के बाद कुछ स्वीकार्यता विकसित हो रही है. कुछ समय के लिए हम पर्सनल लॉ में बिल्कुल भी कदम नहीं उठा सकते और इसे एक लिंग तटस्थ व्याख्या देकर विशेष विवाह अधिनियम तक सीमित कर सकते हैं. इस विकसित हो रही आम सहमति में अदालत संवाद की भूमिका निभा रही है और हम अपनी सीमाओं के बारे में जानते हैं.
जस्टिस कौल ने कहा कि रोहतगी का कहना है कि विशेष विवाह अधिनियम का दर्जा ही उन्हें शादी करने का अधिकार देगा और यदि अन्य सभी मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता या देखने की जरूरत नहीं है. जैसा कि CJI कहते हैं कि कभी-कभी समाज में वृद्धिशील परिवर्तन एक बेहतर तरीका होता है. इन्हें संबोधित करने के लिए हमेशा एक बेहतर समय होता है. हर चीज का एक समय होता है. कैसे हम फिलहाल पर्सनल लॉ में कदम नहीं रख सकते हैं और कैसे समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह अधिनियम में पिरोया जा सकता है.