नई दिल्ली. ग्रामीण भारत की हस्तशिल्प, कला और सौंदर्य की झलक के साथ शुक्रवार को हरियाणा के फरीदाबाद में आज से 32वां सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला-2018 शुरू हो गया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस वार्षिक मेले का उदघाटन किया.
इस मेले में इसबार यूपी की झलक दिख रही. इस बार इस मेले में उत्तर प्रदेश थीम राज्य और सहयोगी देश किर्गिस्तान है. मेले में आने वाले लोगों को उत्तर प्रदेश की संस्कृति से रूबरू होने का मौका भी मिल रहा है. यह मेला 2 फरवरी से शुरू होकर 18 फरवरी तक चलेगा. दर्शकों के लिए सूरजकुंड मेला सुबह 10 बजकर 30 मिनट से रात 8 बजकर 30 मिनट तक खुला रहेगा. शनिवार-रविवार इस मेले का टिकट 120 रुपये प्रति व्यक्ति है और बाकि दिनों में 180 रुपये प्रति व्यक्ति. सूरजकुंड मेले का टिकट ऑनलाइन भी बुक किया जा सकता है.
पहली बार वर्ष 1987 में सूरजकुंड शिल्प मेले का हुआ था आयोजन
सूरजकुंड शिल्प मेले का आयोजन पहली बार वर्ष 1987 में भारत के हस्तशिल्प, हथकरघा और सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि एवं विविधता को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था. केंद्रीय पर्यटन, कपड़ा, संस्कृति, विदेश मंत्रालयों और हरियाणा सरकार के सहयोग से सूरजकुंड मेला प्राधिकरण तथा हरियाणा पर्यटन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित यह उत्सव सौंदर्यबोध की दृष्टि से सृजित परिवेश में भारत के शिल्प, संस्कृति एवं व्यंजनों को प्रदर्शित करने के लिहाज से अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण स्थान एवं शोहरत रखता है.
वर्ष 2013 में सूरजकुंड शिल्प मेले को मिला अंतर्राष्ट्रीय मेले का दर्जा
वर्ष 2013 में सूरजकुंड शिल्प मेले को अंतर्राष्ट्रीय मेले का दर्जा दिए जाने से इसके इतिहास में एक नया कीर्तिमान स्थापित हुआ. वर्ष 2015 में यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया के 20 देशों ने इस मेले में भागीदारी की. इस वर्ष मेले में 23 देशों ने भाग लिया है, जिनमे चीन, जापान, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो, मिश्र, थाईलैंड, मालदीव, रूस, किर्गिस्तान, वियतनाम, लेबनान, ट्यूनिशिया, तुर्कमेनिस्तान, मलेशिया और बांगलादेश की जोरदार उपस्थिति है.
सूरजकुंड का इतिहास
सूरजकुंड का नाम यहां 10वीं सदी में तोमर वंश के राजा सूरज पाल द्वारा बनवाए गए एक प्राचीन रंगभूमि सूर्यकुंड से पड़ा. यह एक अनूठा स्मारक है, क्योंकि इसका निर्माण सूर्य देवता की आराधना करने के लिए किया गया था और यह यूनानी रंगभूमि से मेल खाता है. यह मेला वास्तव में, इस शानदार स्मारक की पृष्ठभूमि में आयोजित भारत की सांस्कृतिक धरोहर की भव्यता और विविधता का जीता-जागता प्रमाण है.