बिलासपुर(ग्राम पंचायत बकैण). हिमाचल में विधानसभा चुनाव के खुमार के बीच, पंचायत टाइम्स की टीम बिलासपुर के बकैण गांव पहुंची. यहां पंचायत टाइम्स के विशेष संवाददाता राजन पाण्डेय ने फेसबुक लाइव की अगली कड़ी में, राजनीति से थोड़ा हटकर, परमवीर चक्र विजेता नायब सूबेदार संजय कुमार के परिवार से बातचीत की.
इस बार राजन हमें देश के लिए मर-मिटने वाले जवानों की दुनिया में ले गए. बातचीत शुरू होने से पहले राजन ने दूरदर्शन के उस जमाने को याद दिलाया जब महाभारत, व्योमकेश बक्शी और परमवीर चक्र जैसे कार्यक्रम आते थे.
खासकर चेतन आनंद के द्वारा बनाया गया सीरियल परमवीर चक्र उन वीरों की कहानी को बताता था, जिन्हें आजादी के बाद से लेकर अब तक यह वीरता का पुरस्कार दिया गया.
परमवीर चक्र की खासियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह पुरस्कार सिर्फ 21 सेनाकर्मियों को ही मिला है. जिसमे 14 लोगों को मरने के बाद यह पुरस्कार दिया गया.
गोली खाकर किया चोटी फतह
नायब सूबेदार संजय कुमार को उनके साहस के लिए यह पुरस्कार दिया गया. संजय कुमार की टुकड़ी को एक ऑपरेशन दिया गया, जिसमे एक चोटी को फतह करना था. जब ये लोग ऊपर उस चोटी पर पहुंचे तो वहां मशीनगन के 2 पिटबॉक्स थे जिससे फायरिंग चल रही थी. जिसकी वजह से और ऊपर जाने में परेशानी आ रही थी.
रायफलमैन संजय कुमार खुद पहली टुकड़ी तक पहुंचे. गोलीबारी के दौरान वह उस मशीनगन तक भी पहुंचने में सफल रहे. संजय को गोली लगी हुई थी इसके बावजूद उन्होंने मशीनगन को बंकर से खीच लिया और हाथापायी में पाकिस्तानी सिपाही को मार गिराया.
लेकिन अभी तक दूसरी मशीनगन बाकी थी जिसे संजय कुमार ने नेस्तनाबूत किया. इस दौरान संजय कुमार को कई गोलियां लग चुकी थी. एक समय सेना के अधिकारी भी हैरत में थे कि वह वाकई जिंदा हैं या नहीं.
दो प्रयास में सफल नही हुए थे संजय
संजय कुमार के बड़े भाई प्यार सिंह ने बताया कि संजय कुमार का शुरू से ही सेना में जाने का रुझान था. इस इलाके में ज्यादातर लोग सेना में ही जाने की इच्छा रखते हैं. उन्होंने बताया कि संजय सिंह पहले और दूसरे प्रयास में सफल नहीं हो सके थे. वह 1996 में तीसरे प्रयास में भर्ती हुए थे.
भाई प्यार सिंह ने बताया कि जब संजय घायल होकर अलीगढ़ में भर्ती हुए तब उन्हें पता चला कि वह कारगिल युद्ध पर गए थे. जब उन्होंने अपने भाई से मिलने का प्रयास किया तबतक ऊन्हे लखनऊ रेफर किया जा चुका था. जिसके बाद नौकरी के चलते वह उनसे नहीं मिल सके. उन्होंने भाई के गंभीर रूप से घायल होने की खबर माता-पिता को नहीं दी. उन्हें बाद में इसका पता चला जिसपर वह प्यार सिंह पर काफी नाराज भी हुए थे.
संजय कुमार के पिता दुर्गा राम और माता भाग देवी बताते हैं कि संजय को बचपन से ही वर्दी पहनने का शौक था. चुनाव के बारे में सवाल करने पर उन्होंने बताया कि वह हर चुनाव में मतदान करने जाते हैं.
चुनाव के दौरान राजन पाण्डेय की परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार की यह कहानी वाकई एक अलग सा एहसास दिलाती है. यह स्पेशल कवरेज यह बताती है कि हमारे देश की शान बढ़ाने पर कितने वीर सपूतों ने बिना डरे अपनी जान न्योछावर कर दी. अब हमारी बारी है कि मतदान के जरिए ऐसे लोगों को चुने जो हमारे देश को उचाईयों तक लेकर जाए, जो लोगों की समस्या को समझ सकें.
आगे भी पंचायत टाइम्स की टीम चुनावी कवरेज के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति, हिमाचल के समाज और हिमाचल के लोगों पर कवरेज जारी रखेगी.