21 वीं सदी में सूचना एवं प्रोद्यौगिकी के ज़माने में लोगों के जीवनशैली में काफी बदलाव आया है. अब डिजिटल माध्यमों से चीजें जानने-समझने के काफी आसानी हो गई है. पिछले दिनों जब पीएम ने पूरे देश में कैशलेस होने की घोषणा की तो लोगों के लिये यह कदम बेहद क्रांतिकारी रहा.
प्रधानमंत्री के द्वारा आठ नवम्बर 2016 को जब यह घोषणा की गयी कि 500 और 1000 के नोट प्रचलन के बाहर हो गये हैं तब देश में हाहाकार मच गया था। पहले-पहल यह समझना मुश्किल हो रहा था कि किस मकसद से भारत सरकार ने यह कदम इतने आनन-फानन में उठाया है.
उन दिनों डिजिटल लेन-देन काफी बढ़ गया था. मोबाइल वॉलेट कंपनियों की चांदी हो गई थी. केंद्र सरकार के तरफ से भी कैशलेस समाज बनाने को प्रचारित भी किया जा रहा था. देश के हर राज्य में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए काफी प्रचार भी किया गया. परन्तु नोटबंदी के आठ महीने बाद क्या समाज में कुछ बदलाव आया है? डिजिटल भारत का सपना देख रहे समाज के लिये इस सवाल पर बात करना जरूरी है.
पेटीएम से मिले आंकड़ों के मुताबिक उनके उपयोगकर्ता उस दौरान बड़ी तेजी से बढ़े लेकिन इसके बाद फिर उनका हाल पहले जैसा ही हो गया है. इससे यह पता चलता है कि जिस ‘कैशलेस सोसाइटी’ की हम कल्पना कर रहे थे उसमे कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है.
दरअसल देश के इंफ्रास्ट्रक्चर में इतना बदलाव है ही नहीं कि हम कैशलेस समाज की परिकल्पना अभी कर सकें. केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा नोटबंदी के दौरान कैशलेस तरीकों को काफी प्रचारित किया गया. इसे प्रचारित करने के लिए केंद्र सरकार ने ‘भीम एप’ भी लॉच किया गया ताकि लोगों के डिजिटल ट्रांजेक्शन में आसानी है. बिना इन्टरनेट के भी सरकार ने मोबाइल नंबर से पैसे के लेन–देन करने की सुविधा उपलब्ध करवाई, परन्तु वह समय बीतने के बाद हालात फिर से पहले जैसे हो चुके हैं.
इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को लगातार प्रयास करने होंगे. डिजिटल इकॉनमी को लगातार प्रचारित करना होगा और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना होगा. बाज़ार में नोटों के संख्या की कम होने कारण लोगों ने कैशलेस माध्यम को अपनाया था परन्तु अब वो इसे फिर छोड़ रहे हैं। जाहिर है डिजिटल भारत के सपने को साकार करने के लिये अभी केंद्र और राज्य सरकारों को जमीनी स्तर पर बहुत से बड़े कदम उठाने की जरूरत है जिससे हर जगह इंफ्रास्ट्रक्चर बन सके तभी यह सपना सच हो पाएगा.