सोलन (अर्की). आधुनिकरण की दौड़ में पांरपरिक व्यवसाय दम तोड़ता नजर आने लगा है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अब पांरपरिक व्यवसाय से रोटी रोजी कमाना दुर्लभ कार्य होने लगा है. यही कारण है कि अधितर लोगों ने अपने पारंपरिक कार्य करने से तौबा कर ली है.
कुछ लोग अब भी अपने पांरपरिक कार्य में जुटकर अपने परिवार की आय बढ़ाने में जुटे हैं. ऐसी ही एक शख्स है उपमंडल अर्की के देवरा पंचायत के गांव जखौली की रहने वाली जानकी देवी.
यह पिछले करीब दो दशक से पत्तल बनाने का कार्य करती आ रही है. जानकी देवी का कहना है कि आधुनिक दौर में पत्तल बनाने का कार्य लगभग समाप्त हो गया है. क्योंकि वर्तमान समय में कागज के पतलो व डोने के आकर्षण डिज़ाइन उपलब्ध है. लेकिन प्रतिस्पर्धा की दौड़ में यह इस व्यवसाय को जिंदा रखे हुए है.
वह इस व्यवसाय को करने के लिए अपने परिवार व अन्य महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं. जानकी देवी का कहना है इस कार्य को करने में जहां मेहनत ज्यादा है. वहीं इसके दाम 10 पत्तलों के 40 रुपये मिल रहे है. जिस कारण यह व्यवसाय लुप्त होने की कगार पर है.
गौरतलब है कि करीब दो दशक पूर्व तक ग्रामीण क्षेत्रों में होने किसी भी समारोह में टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन किया करते थे. हालांकि कई स्थानों पर आज भी इन्हीं पतलों पर भोजन परोसा जाता हैं,लेकिन अब इनका स्थान आज कागज की प्लेटों ने ले लिया है. पतलों के व्यवसाय से जहां कई परिवार जुड़े हुए थे, वहीं यह पतले पर्यावरण के लिए नुकसान दायक नहीं होती थी. इसके साथ ही पतलों पर भोजन करना शुभ व स्वच्छ माना जाता था.