भरूच. जिले के पारसीवाडा में फिरोज गांधी के घर के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. दर्जन भर लोगों से पूछने के बाद एक मकान के बारे में तय हो पाता है कि कभी यहीं फिरोज गांधी के पुरखे रहते होंगे. नीले रंग के तिमंजिले बिल्डिंग को उनका पुश्तैनी मकान बताया जाता है.
घर में ताला पड़ा है. छह महीने पहले तक पारसी समुदाय के पादरी के बेटे इसी मकान में रहते थे. जन्म से व्हिलचेयर पर चलते थे. छह महीने पहले गुजर गये. तब से मकान पर ताला पड़ा है. अब चाबी उनके भाई के पास है. उनके भाई मुंबई में रहते हैं. मकान के मालिक भी वही हैं.
एक समय थे 4 हजार पारसी समुदाय
भरूच के पारसीवाडा मे कभी 4 हजार से ज्यादा पारसी समुदाय के लोग रहते थे. अब पूरे भरूच में 150 से भी कम बच गये हैं. मुहल्ले में दो भव्य ‘फायर टेम्पल’ बताते हैं कि कभी यह पारसियों का मुहल्ला था. मुहल्ले के कई मकानों पर ताले पड़े हैं. सभी पारसी समुदाय के हैं. ज्यादातर पारसी लोगों ने अपने मकान बेच दिये. यहां मुस्लिम बस्ती आबाद हो गयी है. चार साल पहले बने पांच मंजिले ‘मदरसा-बुहरानिया’ में चल रही मजलिस इसकी पुष्टि करती है.
बचे हैं सिर्फ 15 घर
मुहल्ले में अब पारसी के सिर्फ 15 घर हैं. इन घरों में ज्यादातर बड़े-बुजुर्ग रहते हैं. इन्हीं में एक घर होमी भाभा का है. अकेले रहते हैं. बैंक की नौकरी से रिटायर्ड हैं. भारूच पारसी पंचायत के ट्रेजरर भी हैं. बताते हैं कि फिरोज गांधी के पूर्वज के यहां के होने के कोई प्रमाण नहीं हैं. अपने पिताजी से सुनी बात को दोहराते हैं, “फिरोज गांधी के पूर्वज कई पीढ़ी पहले रहते होगें, लेकिन उनका मकान भी है, इसका कोई प्रमाण नहीं है.”
इंदिरा गांधी ने नहीं किया कोई जिक्र
होमी भाभा साल 1970 को याद करते हुये कहते हैं, “जब इंदिरा गांधी भरूच आईं थी तब उन्होंने नहीं कहा कि उनके पति फिरोज गांधी के पूर्वज यहीं से थे, अगर ऐसा कुछ होता तो वह जरूर हमारे मोहल्ले में आतीं.” वे बताते हैं कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यहां के तत्कालीन कलेक्टर ने खोजबीन शुरू की थी लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला.”
पारसीवाड़ा फिरोज गांधी की वजह से 2007 में चर्चा में आया जब वरूण गांधी भरूच में अपने दादा फिरोज गांधी के ‘पुश्तैनी घर’ आये. पादरी के बेटे ने दावा किया कि उनके पिताजी(पादरी) ने कहा था कि यह मकान फिरोज गांधी के पुरखों का ही है. उस समय यहां पादरी के बेटे रहते थे. वरूण गांधी इस घर में आये भी थे. इसके पहले तक यहां नेहरू-गांधी परिवार का कोई नहीं आया. वरुण गांधी के जाने के बाद उनके परिवार से यहां कोई नहीं आया है. बतौर होमी भाभा अब भी कभी-कभी कभार कोई पर्यटक या मीडियावाला इस मुहल्ले में फिरोज के मकान को ढूढ़ते आ जाता है. सवालिया नजर से पूछते हैं, “इधर कुछ ज्यादा ही लोग फिरोज के घर को ढ़ूढ़ रहे हैं.”