नई दिल्ली. आज (9 अगस्त) देश के 26 शहरों के वैज्ञानिक सड़क पर उतर रहे हैं. मार्च का उदेश्य विज्ञान का प्रसार और लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित करना है. मार्च में देश के बेहतरीन शोध संस्थानों के वैज्ञानिक और शोधार्थी शामिल हो रहे हैं.
वैज्ञानिकों की मांग है कि वैज्ञानिक शोध के लिए फंड को बढ़ाया जाए. इसके साथ ही इस मार्च के जरिये वे हाल में बढ़ रही अवैज्ञानिक सोच और धार्मिक पूर्वाग्रहों का विरोध भी कर रहे हैं.
भारत में आज हो रहा यह मार्च, विश्वस्तर पर 22 मार्च को हुए ‘ग्लोबल मार्च ऑफ साईंस’ से प्रेरित है. विश्वभर के 600 शहरों में हुए इस मार्च में 10 लाख लोगों ने भाग लिया था. मार्च के जरीये अमेरिका में वैज्ञानिक शोधों में की गई कटौती और जलवायु परिवर्तन पर ट्रंप की नीति का विरोध किया गया था.
आयोजकों का कहना है कि भारत में भी वैज्ञानिक सोच पर खतरा बढ़ रहा है. बेंगलूरू के ‘ब्रेक थ्रू साईंस सोसाईटी’ के राज्य सचिव के. एस. रजनी कहती हैं “22 मार्च को विश्वभर में हुए ग्लोबल मार्च ऑफ साईंस का स्वागत भारत में नहींं किया गया, जबकि यहां भी वही स्थिति है.”
इसी साल जून में देश के सबसे बड़े शोध संस्थान, टवैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ में आर्थिक आपातकाल की स्थिति पैदा हो गई. संस्थान के निदेशक गिरीश साहनी ने न्यूज एजेंसी आईएनए को कहा कि किसी भी नए प्रोजेक्ट को चलाने के लिए संस्थान पास बहुत सीमित धन रह गये हैं.
अधिकतर देशों में वैज्ञानिक शोध के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 से 3.5 फीसदी राशि खर्च की जाती है जबकि भारत में यह सिर्फ 0.85 फीसदी ही है.