शायद आप इस नाम से परिचित नहीं होंगे लेकिन अगर टॉम आल्टर कहें तो आप सबके सामने एक रौबीले व्यक्तित्व वाला चेहरा सामने आ जाता होगा जिसने कुछ ऐसे किरदार निभाये जिन्हें देखकर हमें कभी डर लगा तो कभी ख़ौफ़ हुआ और कभी हँसी से सराबोर भी हुए। इस चेहरे ने भले ही खल भूमिकायें अधिक की हों लेकिन निजी जीवन में उन या मिलनसार, समाजसेवी और सरोकार से वास्ता रखने वाला होना आज की दुनिया में थोड़ा मुश्किल है।
लम्बी बीमारी के बाद शुक्रवार को इस फानी दुनिया को अलविदा कहने वाले टॉम अपने पीछे 300 फिल्में और सैकड़ों नाटक, इसके अलावा ढ़ेरों वृत्तचित्र एवं धारावाहिक और ना जाने क्या -क्या छोड़ गये हैं! टॉम के जीवन में पेशागत उपलब्धियों की एक लम्बी फेहरिस्त है और वो अपने पीछे जितना कुछ छोड़ कर गये हैं, उसकी थाती को संभाल पाना किसी भारतीय कलाकार के लिये भी मुश्किल है।
राष्ट्रपति कोविंद एवं प्रधानमंत्री ने दी श्रद्धांजलि
Sad to hear of demise of veteran actor Tom Alter. He will be remembered by film lovers. Condolences to his family #PresidentKovind
— President of India (@rashtrapatibhvn) September 30, 2017
PM expressed grief on the demise of Shri Tom Alter and recalled his contribution to the film world and theatre. He extended condolences to the family & admirers of Shri Tom Alter.
— PMO India (@PMOIndia) September 30, 2017
टॉम के पितामह 1916 में ब्रिटिश शासन के दौरान अमेरिकी प्रेसबाइटेरियन मिशनरी समूह के साथ भारत पहली बार आये थे। टॉम के पिता का जन्म अविभाजित भारत में हुआ था और भारत के बंटवारे के बाद उनके परिवार ने भारत में रहना तय किया था। टॉम का जन्म 22 जून 1950 को मसूरी में हुआ, और उनके बचपन का एक अच्छा हिस्सा उत्तर भारत के राजपुर और मसूरी जैसे शहरों में बीता और उनकी शिक्षा प्रतिष्ठित वुडस्टॉक स्कूल में हुयी ।
सत्तर के दशक में जगाधरी (हरियाणा) में पढ़ाने के दौरान टॉम ने हिंदी भाषा में महारथ हासिल कर ली। राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर द्वारा अभिनीत फिल्म “आराधना” देख कर उनके ऊपर हिंदी फिल्मों का भूत चढ़ने लगा। धीरे धीरे उनकी रूचि हिंदी फिल्मों में बढ़ती गयी और वे सामानांतर सिनेमा के दीवाने बन गये। इस दौर में टीवी का प्रभुत्व कायम नहीं हुआ था और भारतीय जनमानस, मनोरंजन के लिये फिल्मों पर आश्रित था। लोग हफ्ते में दो- तीन फिल्में भी देखते थे ऐसे में टॉम भी सिनेमा को लेकर काफी संवेदनशील होते चले गये।
लेकिन उनके भाग्य ने करवट ली 1972 में जब उन्होंने अखबार में निकले एक छोटे से विज्ञापन को देखकर भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में पंजीकरण करवाया। प्रवेश परीक्षा के बाद टॉम उन दो में से एक सफल अभ्यर्थी थे जिन्होंने उस वर्ष के कुल 1000 अभ्यर्थियों को पछाड़ कर दाखिला पाया था। एफटीआईआई में उन्हें नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, मिथुन चक्रवर्ती और बेंजामिन गिलानी जैसे दिग्गजों का साथ मिला जिसके बाद उनकी कल्पना शक्ति को नये आयाम मिलने लगे।
वे 1974 में स्वर्ण पदक लेकर संस्थान से निकले और संस्थान से पढ़ाई ख़त्म करने के बाद टॉम ने सीधे मुम्बई की तरफ रुख कर लिया। जहाँ उन्हें जल्द ही उनका पहला ब्रेक मिला चेतन आनंद निर्देशित फिल्म साहब बहादुर में। इस फिल्म की मुख्य भूमिका में देव आनंद भी थे। लेकिन तकनीकी रूप से टॉम की पहली रिलीज़ हुयी फिल्म है रामानंद सागर द्वारा बनाई गयी “चरस” जिसमें उन्होंने एक सीआईडी अधिकारी और धर्मेंद्र के बॉस का किरदार निभाया था। सत्तर से अस्सी के दशक के बीच में टॉम एक स्थापित अदाकार बन चुके थे और उन्होंने कई नामचीन निर्देशकों जैसे कि ऋषिकेश मुखर्जी, मनमोहन देसाई, मनोज कुमार और सत्यजीत रे के निर्देशन में काम किया वहीँ दूसरी तरफ कई नवप्रवेशी निर्देशकों के साथ भी काम किया।
टॉम ने 1977 में सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित “शतरंज के खिलाड़ी”, 1979 में श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित “जूनून”, 1981 में मनोज कुमार द्वारा निर्देशित “क्रान्ति” समेत 1985 में राजकपूर द्वारा निर्देशित “राम तेरी गँगा मैली” में अपने अभिनय से सबको चकित कर दिया।
हिंदी भाषा की फिल्मों के अलावा टॉम ने क्षेत्रीय भाषाओँ में भी काम किया और बांग्ला समेत असमिया, तेलुगू, तमिल और कुमाउँनी भाषा की फिल्मों में लम्बे समय तक काम किया। भारत में टीवी के पदार्पण के साक्षी रहे टॉम ने टीवी पर अपनी अभिनय क्षमता को खूब निखारा और कई चर्चित धारावाहिकों में काम किया। लेकिन इन सबके बीच उनका एक टीवी किरदार जो उन्होंने जूनून नामक धारवाहिक में अदा किया, वह इतना प्रचलित हुआ कि उसने टॉम की लोकप्रियता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए. टॉम ने इस धारावाहिक में एक प्रभावशाली क्षत्रप का किरदार निभाया था जिसका नाम केशव कलसी उर्फ़ केके था। यह धारावाहिक पाँच साल तक चला और टॉम को घर-घर में लोग पहचानने लगे। इसी दौर में टॉम ने टीवी के लिये हास्य व्यंग्य सीरीज़ “जबान संभालके और एक अन्य धारावाहिक “घुटन” समेत एक चिकित्सा पर आधारित परिचर्चा “मेरे घर आना जिन्दगी” का भी संचालन किया। टॉम ने श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित धारावाहिक भारत एक खोज समेत अन्य प्रमुख धारावाहिक जैसे कि शक्तिमान, कैप्टन व्योम और यहाँ के हम सिकंदर इत्यादि में भी काम किया और उनका आखिरी टीवी धारावाहिक था “रिश्तों का चक्रव्यूह’ .
फिल्मों में टॉम द्वारा निभाये गये कुछ रोल आज भी सबके ज़ेहन में बसे हुए हैं। जिनमें प्रमुख रूप से विधु विनोद चोपड़ा निर्देशित फिल्म परिंदा में उनका मूसा का किरदार और महेश भट्ट द्वारा निर्देशित आशिकी में एक क्रूर हॉस्टल मालिक कैम्पबेल का किरदार और केतन मेहता की फिल्म सरदार में लार्ड माउण्टबेटन का किरदार आज भी कुछ नया सिखाते हैं।
टॉम ने थियेटर के लिये भी लम्बे अरसे तक काम किया और उन्होंने नसीरुद्दीन शाह और गिलानी के साथ मिल कर 1979 में मोटली प्रोडक्शन्स की भी आधारशिला रखी। इसके अलावा उन्होंने विलियम डेरलिमपेल की कृति “सिटी ऑफ़ जिन्स ” का नाट्य रूपान्तर किया। मौलाना आज़ाद के जीवन पर आधारित ढाई घंटे के एकल नाटक “मौलाना” में किरदार निभा कर उन्होंने आलोचकों से भी प्रशंसा प्राप्त की। ‘तीसवीं शताब्दि’, ‘कोपेनहेगन’ और ‘इन ग़ालिब इन डेल्ही’ जैसे नाटकों में टॉम ने लम्बी लकीर खींच दी और वे अलग से दिखने लगे। कला फिल्म “ओशन आफ अ गोल्ड मैन” में उनके किरदार को विदेशों में भी सराहा गया और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में पीटर-ओ-टूल के फिल्म “वन नाइट विथ द किंग” में किये गये किरदार के कारण टॉम को चँहुओर ख्याति मिली।
टॉम की रूचि उर्दू साहित्य में अच्छी खासी थी और वे मिर्ज़ा ग़ालिब का किरदार भी निभा चुके हैं। उर्दू भाषा के नाटकों में- ‘बाबर के औलाद’ , ‘लाल किले का आखिरी मुशायरा’ और ‘ग़ालिब के खत’ प्रमुख हैं।कम लोग जानते हैं कि टॉम ने निर्देशन की दुनिया में भी काम किया है और उन्होंने लघु अवधि की सीरीज़ “यूल लव स्टोरीज” की एक उपकथा को भी नब्बे के दशक में निर्देशित किया है। टॉम ने अस्सी से नब्बे के दशक में खेल पत्रकारिता भी के है और सचिन तेंदुलकर का पहला साक्षात्कार उन्होंने ही लिया था। टॉम ने तीन किताबें लिखीं जिनमे दो उपन्यास हैं, उन्हें 2008 में कला-संस्कृति एवं सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिये भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाज़ा। टॉम की आखिरी फिल्म “सरगोशियां” इस वर्ष मई में रिलीज़ हुयी थी जिसमे उनके साथ आलोक नाथ और फरीदा जलाल ने काम किया था।
टॉम का जाना भारतीय सिनेमा के लिये एक बड़ा आघात है, वे अपने पीछे पत्नी कैरोल, पुत्री अफशां, पुत्र जैमी समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं. टॉम के निधन के बाद राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री समेत कई गणमान्य व्यक्तियों पर ट्विटर एवं अन्य माध्यमों पर खेद प्रकट किया है।