कुल्लू. ‘धूम्रपान निषेध’ यह एक ऐसी इबारत है जो हर सार्वजनिक स्थल पर लिखी होती है और शायद जिसकी सबसे ज्यादा अनदेखी भी होती है. मगर ठहरिए, एक स्थान ऐसा भी है जहां यह चेतावनी कहीं नहीं लिखी मगर पूरी कड़ाई से इसका पालन होता है. यह है हिमाचल के कुल्लू जिले में फलाण गांव. यहांं किसी प्रकार के तंबाकू पदार्थों का सेवन कड़ाई से वर्जित है.
नजीर बन सकता है फलाण
जिला मुख्यालय कुल्लू से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित फलाण गांव में धूम्रपान करना ही नहीं लाना भी पूर्णतय निषिद्ध है। यहां की दुकानों पर आपको बीड़ी, सिगरेट, खैनी, गुटखा या तंबाकू के कोई भी पदार्थ नहीं मिलेंगे. इस्तेमाल करने वालों को ग्रामीण न सिर्फ कड़ाई से टोक देते हैं बल्कि आइंदा ऐसा करने पर गांव से बाहर निकाल देने की चेतावनी भी दे देते हैं.
हमारा गांव तंबाकू से होने वाले दूष्प्रभावों से दूर है क्योंकि इस गांव का कोई भी मनुष्य तंबाकू का सेवन नहीं करता है जिससे उन्हें बीमारी का डर नहीं रहता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी हमारे गांव से लोगों को सीख लेनी चाहिए।
– सेस राम चौधरी पूर्व चेयरमेन जिला परिषद कुल्लू ।
देव-दानव युद्ध से जुड़ी है मान्यता
गांव का यह नियम दरअसल देव-दानव युद्ध की एक दंतकथा से उपजी मान्यता से जुड़ा है. गांव के सुखराम फलाण बताते हैं कि पुरातन काल में सीघी-धिंगी दैत्य के साथ युद्ध हो रहा था. देवता शिवराड़ी नारायण-फलाणी नरायण पर दैत्यों की सेना भारी पड़ रहा थी.
देवता मधुमक्खी बनकर तंबाकू के फूल में छिप गए और तंबाकू के फूल से कहा कि किसी को न बताएं. जब दैत्य वहां पर आए तो फूल की डाली झुक गई और दैत्य को मालूम पड़ गया कि देव फलाणी नरायण यहीं पर छुपे हैं. मधुमक्खी के रूप में देव तो उड़ गए मगर उन्होंने आदेश दिया कि फलाण गांव में न तो कोई तंबाकू को छूएगा और न ही इसका सेवन करेगा. दैवीय प्रकोप के डर से फलाण के लोग तंबाकू का प्रयोग नहीं करते.