कहते हैं कि व्यापार गुजरातियों के खून में है, और समंदर से इस व्यापार का पुराना रिश्ता रहा है. हिंदुस्तान के इतिहास में इंसान ने पहली बार नाव पर चढ़कर अपना सामान समंदर पार के बाज़ारों में पहुंचाने का काम गुजरात से ही शुरू किया था. आज से लगभग चार हजार साल पहले, सिन्धु घाटी सभ्यता का पहला सामुद्रिक व्यापार केंद्र लोथल में शुरू हुआ था, जिसके अवशेष आज भी अहमदाबाद जिले के लोथल क्षेत्र में देखे जा सकते हैं. सामुद्रिक व्यापार का ये सिलसिला आज भी जारी है.
समंदर के किनारे बसा द्वारका जिले का सलाया गांव ‘जहाजियों’ का गांव भी कहा जाता है, क्यूंकि गांव के लगभग आधे निवासी कभी न कभी समुद्र पार कर के अमीरात और अफ्रीका के इलाके तक जा चुके हैं. दशकों से यहां के बाशिंदे समुद्र पार के इलाकों से व्यापार कर रहे हैं और इसीलिए इस गांव के प्रसिद्ध होने का एक और कारण है- यहां का वाण उद्योग
कैसे बनता है वाण
वाण इंजन से चलने वाली, 500 से 2000 टन सामान ढोने वाली लकड़ी की उन नावों को कहते हैं जो मछली पकड़ने वाली नावों यानि ट्राॅलर्स से बड़ी होती हैं पर स्टीमर से छोटी. कई महीनों में बनके तैयार होने वाली ये नावें बिना किसी इंजीनियर और डिज़ाइनर के, यहां के स्थानीय लोगों द्वारा बनायी जाती हैं. सलाया से जिला पंचायत सदस्य यासीन बताते हैं- ‘हम मुस्लिम वाघेर समुदाय के लोग हैं और सदियों से यही काम करते रहे हैं. पहले बिना इंजन के वाण बनते थे. कुछेक दशकों से उनमें इंजिन भी लगने लगे हैं.” यासीन के अनुसार ये काम करने वाले गांव के तमाम लोग अनपढ़ हैं लेकिन पीढ़ियों पहले के संचित ज्ञान के चलते सैकड़ों-हजारों टन के वाण बनाना उनके लिए हंसी खेल है.
जहां लकड़ी की चिराई-कटाई से लेके पेंट-वार्निश और ढांचे को बैठाने का काम यहीं के लोग करते हैं वहीं आजकल कुछ खास काम में मदद के लिए सीमान्धरा-तेलंगाना से तेलुगु मिस्त्री भी आने लगे हैं. पूरे काम में कुछेक लाख से कुछ करोड़ रुपये का खर्चा आता है, इसलिए कई बार गांव के लोग साझे में ये काम कर लेते हैं, या बाहर की किसी मालदार पार्टी को साझेदार बना लेते हैं. बनने के बाद नौवहन निदेशालय में हर वाण का रजिस्ट्रेशन होता है. साथ ही क्रू में काम करने वाले लोगों यानि खलासियों का सी-मेन (जहाजी) कार्ड भी बनता है.

कभी उफान पर था व्यापार पर अब छाने लगी मन्दी
एक बार वाण बन जाने के बाद क्या माल ढोते हैं और कहां तक जाते हैं पूछने पर गांव के ही 63 वर्षीय इरफ़ान बताते हैं- ‘ज्यादातर अरब के इलाके में जाते हैं, कई बार अफ्रीका का भी चक्कर लग जाता है. पांच-सात सौ मील तो नार्मल बात है. माल में अनाज-सामान कुछ भी ढो लेते हैं. बकरी-ऊंट की वहां काफी डिमांड है तो कई बार वो भी लाद लेते हैं.’ एक बार ट्रिप पर निकल जाने के बाद आमतौर पर जहाजी लोग कई महीने और कभी-कभी कुछ साल बाद घर लौटते हैं. एक जगह माल उतार के वहीं से दूसरी जगह का सामान चढ़ा लेते हैं और यही सिलसिला चलता रहता है.
समुद्री लुटेरों से लेकर पाकिस्तानी जेलों तक के किस्से
गांव के लगभग हर बूढ़े और नौजवान के पास समुद्र यात्रा को लेकर कोई न कोई रोचक किस्सा जरूर है- सोमालिया के इलाके में समुद्री लुटेरों के सामने से लेकर पाकिस्तान की जेलों में कैद किए जाने तक. दूसरे देशों में पाकिस्तान को लेकर यहां के लोग खासे नाराज़ रहते हैं. 27 साल के महरुख कहते हैं- ‘बहुत रूखे हैं उधर के लोग, कस्टम वाले भी बहुत करप्ट हैं और इंडिया वालों से दुश्मनी निकलते हैं’.
अधिकांश गांव वालों की राय है कि पहले वाण भी कम थे और मुनाफा भी ज्यादा था. इलेक्ट्रॉनिक सामान, घड़ियों वगैरह की स्मगलिंग से भी कुछ लोगों को आमदनी होती थी. लेकिन अब कम्पटीशन बढ़ गया है, और ओपन ट्रेड शुरू होने के चलते पहले वाली बात नहीं रही.
कानूनी अड़चनें भी कम नहीं
गांव के ही कुछ लोग बताते हैं कि आपसी मुकाबले के अलावा क़ानूनी अड़चनें भी बढ़ी हैं. कस्टम वालों और स्थानीय पुलिस की धमकी-घुड़की की दिक्कतें तो हैं ही, कई बार नौवहन निदेशालय वाले रूट भी फिक्स कर देते हैं. यासीन कहते हैं कि कम पढ़े-लिखे होने के चलते गांव के लोग अपने अधिकारों को लेकर सजग नहीं है. “पांच हजार से ज्यादा आबादी वाले हमारे गांव से अब तक दर्जनभर लोग भी ग्रेजुएट नहीं हो पाए हैं. शायद शिक्षा के फैलने के बाद हालत सुधरें”, वो उम्मीद जताते हैं.