प्रदेश में चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है घोषणाओं और वादों का दौर चलना शुरू हो चुका है. इसी क्रम में हिमाचल सरकार ने वर्तमान व पूर्व विधायकों को पट्टे पर जमीन देने का फैसला किया है. जिसके बिना किसी बड़ी अड़चन के पूरे होने की पूरी सम्भावना है.
फैसले के पीछे MLA सोसायटी
आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के कांग्रेस और भाजपा के विधायकों की ‘एमएलए सोसाइटी’ है जो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विधायकों के कल्याण के लिए कार्य करती है. सरकार के इस निर्णय के पीछे भी यही सोसाइटी है. कभी आपने यह नहीं सुना होगा कि जनकार्यों के लिए निर्वाचित विधायकों ने दलगत भावना से ऊपर उठकर कार्य किया हो. बल्कि इसके विपरीत साल दर साल इस तरह के आरोप लगते और चलते रहते हैं कि केंद्र सरकार तो प्रदेश सरकार को पूरा मदद दे रही है लेकिन प्रदेश सरकार हमें कोई सहयोग नहीं दे रही है. दूसरा यह कहते हुए पाया जायेगा कि केंद्र सरकार हमें कोई मदद नहीं दे रही है या फंड नहीं रिलीज कर रही है. ज्यादातर जनकार्य तो सरकारी फाइलों और नियमों-कानूनों के मकड़जाल में फंसकर रहे जाते हैं.
विधायकों की अनोखी एकता
लेकिन जैसे ही मामला वेतन और मिलने वाली सुविधाओं का होता है इन विधायकों की एकता देखते ही बनती है. इससे पहले विधायकों को मिलने वाले वेतन और भत्ते को 1.32 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.10 लाख रुपये प्रतिमाह कर दिया गया, जबकि दैनिक भत्ता 1500 रुपये से बढ़ाकर 1800 रुपये कर दिया गया. रेल या हवाई मार्ग से मुफ्त यात्रा की सीमा दो लाख रुपये से बढ़ाकर प्रति वर्ष ढाई लाख रुपये कर दी गई. सरकार द्वारा दी जाने वाली इन सुविधाओं के अतिरिक्त यदि इन विधायकों की व्यक्तिगत संपत्तियों का आकलन किया जाए तो उनकी वृद्धि के आंकड़े की निरंतरता में किसी तरह की कोई कमी देखने को नहीं मिलेगी! भले ही आम जनता का जीवन दिन-प्रतिदिन और दूभर होता जा रहा हो, देश की अर्थव्यवस्था की हालत खराब होती जा रही हो लेकिन इनकी अर्थव्यवस्था निरंतर विकास पर होती है जिसमे कभी मंदी नहीं आती.
विधानसभा चुनाव और कांग्रेस
जल्द ही राज्य में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में सवाल तो यही बनता है कि आखिर क्या सोचकर और किस नैतिक आधार पर सरकार ने यह फैसला लिया है? जबकि प्रदेश के भूमिहीनों, परियोजनाओं से विस्थापित समूहों को अभी तक जमीन नहीं दी गयी है.
कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भूमिहीनों को दो-दो बिस्वे जमीन देने का वादा किया था जो पूरा नहीं किया गया. उद्योगों और कल्याणकारी परियोजनाओं के लिए जमीनों का अभाव है. खुद राजस्व विभाग ने यह जमीन उद्योग लगाने के लिए रखी थी. राजस्व विभाग के पास ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे विधायकों को जमीन दी जाए. लेकिन सरकार ने इसका तोड़ निकलते हुए हाउसिंग सोसाइटी के प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए विधायकों की पंजीकृत हाउसिंग सोसाइटी को यह जमीन आवंटित कर दी.
भाजपा का ‘टोकन विरोध’
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल ने सरकार के इस निर्णय की आलोचना की है. लेकिन इससे लाभान्वित होने वाले उनके दल के प्रतिनिधियों की भी कमी नहीं है. बल्कि इस निर्णय के पीछे वह शामिल भी हैं. अब देखना यह है कि विपक्ष सरकार के इस फैसले का कितना असरदार विरोध करता है। विपक्ष चाहे तो इस मुद्दे के ऊपर पूरे प्रदेश में जनता की गोलबंदी कर सकता है। नेताओं और सरकारी प्रतिनिधियों की मनमानी से तंग जनता को इस मुद्दे पर एकजुट करना विपक्ष के लिये कोई मुश्किल काम नहीं है बशर्ते कि उसके इरादे मजबूत हों।
फिलहाल जिस तरह का चलताऊ विरोध विधायकों की तरफ से सामने आ रहा है वह वेतन व भत्ते की बढ़ोत्तरी वाले ‘टोकन विरोध’ की याद ही दिलाता है. टोकन विरोध माने कि विरोध भी हो जाए और लाभ भी मिल जाए. इसके लिए पहले उन्हें अपनी पार्टी के लोग जो इसमे शामिल हैं और इसके लाभार्थी होने वाले हैं उन्हें इससे अलग करते हुए उच्च नैतिक मानदंड स्थापित करना चाहिए. विपक्ष को सरकार को इस बात के लिए बाध्य करना चाहिए वह सबसे पहले भूमिहीनों को भूमि आवंटित करे. यह नहीं हो सकता कि आबादी का एक हिस्सा जमीन के अभाव में सड़क पर रहे और जिन्हें इस समस्या से लड़ने व हल करने की जिम्मेदारी दी गयी वह अपने लिए महल खड़े करें.