धर्मशाला. मैक्लोडगंज की हर दूसरी दीवार चीन की ओर से बंदी बनाए व गुमशुदा हुए लोगों की फोटो से भरी पड़ी हैं. दीवारों पर वर्ष 2012 से 2017 तक गुमशुदा व चीन की ओर से बंदी बनाए गए लोगों के फोटो, नाम और वर्ष लिखे गए हैं. पोस्टर लगाने वाले का पता नहीं चल पाया है.
निर्वासित तिब्बती सरकार इस बारे में कुछ नहीं जानती है, लेकिन तिब्बती समुदाय के लोग इस कार्य की सराहना कर रहे हैं. मैक्लोडगंज में मुख्य बौद्ध मंदिर के बाहर दीवारों पर लगाए गए इन पोस्टरों के संबंध में तिब्बती मूल के लोगों के साथ ही इंडो तिब्बत संघ का कहना है कि यह काम जिसने भी किया है वह सराहनीय है. उनका कहना है कि मैक्लोडगंज अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल है और यहां हजारों देसी-विदेशी पर्यटक आते हैं. पोस्टरों को देखकर विश्व को चीन की कारगुजारी और दमनकारी नीतियों का पता चलेगा.
इन लोगों के पोस्टर पर लगाए गए हैं.
गेसे शेरिंग मनग्याल 23 जनवरी, 2012,
गेसे शेरिंग मनग्याल 23 जनवरी, 2012,
एई घोमो 10 सितंबर 2015,
खेंपो कर पेलगा 20 जनवरी, 2016,
पेमा दोरजे, अबन सोनम बंदी, ताशी चोबांग, लांग्याल 11 अक्टूबर, 2011,
डाकूया, यूशी सांग्पो 1 दिसंबर, 2012,
लोग्सांग थुप्टन 2 मई, 2015,
सेबांग नारेबू 3 मार्च, 2012
सेरिंग ग्यात्सो 15 अप्रैल, 2017
गौरतलब रहे कि कुछ माह पहले निर्वासित तिब्बती संसद की ओर से पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, चीन ने पांच हजार तिब्बती समुदाय के लोगों को बंदी बनाया है और डेढ़ हजार को गायब कर दिया है. अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि ये लोग जिंदा हैं या नहीं. तिब्बत की ओर से बार-बार दबाव बनाने के बावजूद यह पता नहीं चल पाया है कि बंदी और गायब हुए लोगों की वर्तमान स्थिति क्या है. तिब्बत की आजादी के लिए अब तक 149 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं. विश्वभर में दबाव बनाने के बावजूद तिब्बतियों की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है. वहीं, चीन तिब्बत के मठों पर अपनों जवानों को तैनात कर रहा है.