नई दिल्ली. म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर जारी हमलों को रोक पाने में विफल स्टेट काउंसलर आंग सान से नोबेल पुरस्कार छीनने की मांग के बीच नोबेल संस्थान के प्रमुख का बयान आया है. बयान में नोबेल पुरस्कार वापस नहीं लेने की वजह बतायी गयी है.
एक न्यूज एजेंसी को मेल से भेजे अपने जवाब में नोबेल संस्थान के प्रमुख ओलव जोल्सताद ने कहा कि न तो नोबेल संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल के वसीयत के अनुसार और न ही नोबेल फाउंडेशन के नियमों के मुताबिक पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति से पुरस्कार वापस लेने का प्रावधान है.
ओलव जोल्सताद ने कहा है, ‘‘एक बार नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किए जाने के बाद प्राप्तकर्ता से पुरस्कार वापस नहीं लिया जा सकता.’’ ओलव ने कहा, ‘‘स्टॉकहोम और ओस्लो की किसी भी पुरस्कार समिति ने पुरस्कार प्रदान किए जाने के बाद उसे वापस लेने के बारे में विचार नहीं किया है.’’
पिछले कई महीनों से म्यांमार के अल्पसंख्यक समुदाय रोहिंग्या मुसलमानों पर उत्पीड़न हो रहे हैं. इसके बाद म्यांमार से पड़ोस के देशों में रोहिंग्या समुदाय का पलायन जारी है. आरोप है कि इसमें ‘आमलोगों’ के साथ-साथ सेना का भी हाथ है. लंबे संघर्ष के बाद म्यांमार में लोकतंत्र की स्थापना हुई थी. आंग सान सू को शांति के लिए उनके प्रयास के मद्देनजर 1991 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था.
इस मामले में आंग सान सू के गैरजिम्मेदार रवैये को लेकर अबतक 3,86,000 लोग Change.org के जरिए ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर कर सू ची से नोबेल पुरस्कार वापस लेने की मांग कर चुके हैं.