30 जुलाई 2015 जब इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई करने के लिए रात में बैठी. सुनवाई 1993 में हुए ‘मुंबई बम विस्फोट’ के मुख्य आरोपी याकूब मेमन की फांसी की सजा को रोकने के लिए दी गई याचिका पर थी. ……एक कठिन मामले में अंतिम निर्णय लेना था.
फांसी की सजा रोकने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के जानकारों ने राष्ट्रपति से अपील की थी. इनमें इंदिरा जयसिंह जैसे कानूनी जानकार और राम जेठमलानी जैसे दिग्गज वकील के साथ मणीशंकर अय्यर, सीताराम येचुरी, माजिद मेमन, केटी शिवा, डी राजा, केटीएस तुलसी और एचके दुआ जैसे सांसद भी शामिल थे.
इतिहासकार इरफान हबीब, डीएन झा और अर्जुन देव, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और जॉन दयाल नसीरुद्दीन शाह जैसे कई जानेमाने लोग ने फांसी रोकने के लिए हस्ताक्षर किया था. यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी याकूब मेमन को फांसी देने के पक्ष में नहीं थे. बावजूद इसके राष्ट्रपति ने फांसी की सजा को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण की अगुवाई में फांसी पर तत्काल रोक के अनुरोध के बाद, एक बार फिर पूरा मामला तीन बेंच वाले पीठ वाली कोर्ट में था जिसके अध्यक्ष थे दीपक मिश्रा.
गुरुवार की रात 3 बजकर 20 मिनट पर जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन बेंचों वाली जजों की पीठ सुनवाई के लिए बैठी. सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर तय हो गया कि याकूब मेमन को फांसी की सजा होगी. दो घंटे बाद 8 बजकर 40 मिनट पर याकूब मेमन को फांसी दे दी गई.
यह इतिहास के कठिनतम फैसलों में एक था. यह पहली बार था जब इतने कम समय में फैसला ले लिया गया और कोर्ट के फैसले पर अमल भी हो गया. न्याय में देरी और लेटलतीफी के बीच इस फैसले के बाद जस्टिक दीपक मिश्रा को एक ऐसे न्यायाधीश के तौर पर देखा गया जो तुरंत और बिना दवाब के फैसले ले सकते हैं. उनके फैसले की आलोचना भी हुई लेकिन वे डटे रहे.
जस्टिस दीपक मिश्रा कड़े फैसले के साथ ‘फिजूल’ मुकदमेबाजी को हतोत्साहित करनेवाले एक कड़क जस्टिस के रूप में जाने जाते हैं. आमिर खान की फिल्म ‘धोबी-घाट’ के नाम को लेकर दायर याचिका पर उन्होने याचिकाकर्ता को डांटा भी और मामले को रफा-दफा कर दिया. वहीं जस्टिस दीपक मिश्रा अब देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं. वे CJI जेएस खेहर की जगह लेंगे. वे 27 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं.
जस्टिस दीपक मिश्रा करीब 40 साल पहले उड़ीसा उच्च न्यायालय से अपनी वकालत शुरू की थी. वे संविधान, सिविल, अपराध, सेवा और सेल्स टैक्स के विशेषज्ञ हैं. साल 1996 में जस्टिस दीपक मिश्रा उड़ीसा उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश बनाए गये. साल 2009 में उन्हे पटना उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. उसके ठीक एक साल बाद उन्हे दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया.
दो साल बाद 2011 में जस्टिस दीपक मिश्रा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने. इस दौरान उन्होने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंग रेप केस में त्वरित फैसला करते हुए उन्होने एक नजीर पेश की थी.
दिल्ली पुलिस के वेबसाइट पर एफआईआर की प्रति डालने का आदेश जस्टिस दीपक मिश्रा ने ही दिया था. ताकि आरोपी, एफआईआर लेकर जल्द-से-जल्द अदालत जा सके.
दीपक मिश्रा अब छह सालों से अटके पड़े रामजन्मभूमि बाबरी विवाद मामले की सुनवाई के लिए गठित विशेष पीठ के सदस्य होने के साथ मुख्य न्यायाधीश भी हैं. त्वरित न्याय देने के उनके रेकार्ड को देखते हुए न्याय के लिए कोर्ट का चक्कर लगा रहे पीड़ित अब शायद यह न पूछे कि “क्या अब फैसला आनेवाला है?” भारत के 45वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के पास सिर्फ 14 महीने का वक्त है और न्याय पाने वालों की कतार बहुत लंबी है.
Aacha analysis ha. Good job ha.