शिमला: निमोनिया (Pneumonia) के खिलाफ एंटीबायोटिक दवाओं की रोगरोधी क्षमता घट रही है. यह खुलासा हिमाचल प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों पर किए गए अध्ययन से हुआ है. वर्ष 2018 और वर्ष 2022 के बीच तुलनात्मक अध्ययन किया गया है.
अध्ययन में खुलासा
इससे स्वास्थ्य क्षेत्र के चिंतकों की चिंता बढ़ गई है. यह अध्ययन श्री गुरु रामदास इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च अमृतसर, आईजीएमसी शिमला के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, डॉ. राजेंद्र प्रसाद राजकीय मेडिकल कॉलेज टांडा समेत विभिन्न संस्थानों ने संयुक्त रूप से किया है. इसमें डॉ. अभिषेक शर्मा, डॉ. अभिषेक ठाकुर, डॉ. निकेता ठाकुर, डॉ. विनीत कुमार, डॉ. अंकित चौहान और डॉ. नेहा भारद्वाज ने भाग लिया. यह एक प्रतिष्ठित जर्नल क्योरअस में छापा गया है. अध्ययन के अनुसार क्लेबसिएला निमोनिया सबसे प्रचलित जीवाणुओं में से एक है.
यह नोसोकोमियल संक्रमण का कारण बनता है. विशेष रूप से आईसीयू में गंभीर रूप से बीमार रोगियों में मल्टी-ड्रग-रेसिस्टेंट क्लेबसिएला निमोनिया सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक तत्काल जोखिम बन गया है, क्योंकि हाल के दशकों में दुनिया भर में इसका प्रचलन तेजी से बढ़ा है. यह शोध यांत्रिक रूप से हवादार गहन देखभाल इकाई रोगियों से अलग किए गए क्लेबसिएला निमोनिया के बीच दवा संवेदनशीलता पैटर्न में चार साल की अवधि में बदलाव का मूल्यांकन करने के लिए किया गया था.
जनवरी से जून 2018 और जनवरी से जून 2022 तक के आंकड़े जुटाए गए. रोगाणुरोधी प्रतिरोध प्रोफाइल के अनुसार उन्हें अतिसंवेदनशील, एक या दो रोगाणुरोधी श्रेणियों के लिए प्रतिरोधी, मल्टीड्रग-प्रतिरोधी (एमडीआर), बड़े पैमाने पर दवा-प्रतिरोधी (एक्सडीआर), या पैन-ड्रग-प्रतिरोधी (पीडीआर) के रूप में वर्गीकृत किया गया.
अध्ययन के परिणाम में क्लेबसिएला निमोनिया के कुल 82 मामले शामिल किए गए. इन 82 आइसोलेट्स में से 40 को जनवरी से जून 2018 तक छह महीने में आइसोलेट किया गया. शेष 42 को जनवरी से जून 2022 तक आइसोलेट किया गया. 2018 के समूह में पांच स्ट्रेन 12.5 प्रतिशत को अतिसंवेदनशील के रूप में वर्गीकृत किया गया. तीन यानी 7.5 प्रतिशत प्रतिरोधी के रूप में सात यानी 17.5 प्रतिशत एमडीआर के रूप में और 25 यानी 62.5 प्रतिशत एक्सडीआर के रूप में देखे गए.
निष्कर्ष में पाया गया कि निमोनिया एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक वास्तविक खतरा है. एंटीमाइक्रोबायल्स की नई पीढ़ी बनाने के लिए अधिक सावधानीपूर्वक प्रयास किए जाने चाहिए. स्वास्थ्य संस्थानों की ओर से नियमित रूप से एंटीबायोटिक प्रतिरोध की निगरानी और इन्हें रिपोर्ट करना चाहिए.