नई दिल्ली. देश को चावल उत्पादन में अग्रणी बनाने में अपना योगदान देने वाले देश के सबसे पुराने चावल अनुसंधान केन्द्र में से एक रिजनल एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन करजत 100 का साल का होने जा रहा है. महाराष्ट के रायगढ़ जिले में स्थित इस केन्द्र को 14 अगस्त, 1919 को ब्रिटिश शासन के दौरान एक क्षेत्रीय स्टेशन के तौर स्थापित किया गया था. इस संसथान ने धान की 20 से ज्यादा किस्मों को विकसित कर चुका है.
इस केन्द्र के बारे में जानकारी देते हुए यहां के इंचार्ज डॉ. एल.एस. चव्हाण ने बताया, ” चावल और आम की उन्नत किस्मों को विकास करने के लिए इस केन्द्र को खोला गया था. तब से लेकर आजतक इस केन्द्र ने इस दिशा में कई मिसाल कायम की है. यहां की कुछ किस्मों ने तो पूरे भारत में अपना धमाल मचाया है. यह केन्द्र डॉ. बालासाहेब सावंत कोकण कृषि विद्यापीठ, दापोली, रत्नागिरी जिले के अंतगर्त आता है. ”
चावल अनुसंधान के लिए ए-ग्रेड का यह केन्द्र
उन्होंने बताया कि अच्छा उत्पादन वाली चावल की किस्मों का अनुसंधान यहां पर लगभग 39 एकड़ में किया जा रहा है, जिसमें 120-145 दिनों में विकसित होने वाली तीन किस्में बीआरसीसीकेकेवी-13, बीएम-4, कारजात 10 पर काम किया जा रहा है.
डॉ. एल.एस. चव्हाण ने बताया कि इस अनुसंधान केंद्र में चावल, आम और फूलों की विभिन्न प्रकार की बीमारियों के प्रतिरोधक किस्मों का अनुसंधान का कार्य किया जाता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इसे चावल के उच्च अनुसंधान के लिए ए-ग्रेड में रखा गया है. यही नहीं केंद्र ने 34 चावल के ब्रीडर्स के साथ मिलकर भी कार्य किया है.
उनके अनुसार पंजाब और हरियाणा में जबर्दस्त पैदावार देने वाली चावल की किस्म सहयाद्रि-4 को इसी केन्द्र ने साल 4008 में विकसित किया था. धान की प्रति हैक्टेयर लगभग 100 कुंतल का उत्पादन करने वाली धाप की इस किस्म का पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में खूब बुवाई की जाती है.