गुजरात. उत्तर गुजरात का साबरकांठा अनुसूचित जाति और जनजाति बहुल जिला है. जिले में कुल चार विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें दो आरक्षित हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में चार विधानसभा सीट में भाजपा और कांग्रेस को दो-दो सीटें मिली थीं. इसी जिला के सलाटपुर गांव का दौरा कर हमने जानना चाहा कि आखिर पाटीदार आंदोलन की जरूरत क्यों आन पड़ी है.
समृद्धि के बावजूद आरक्षण क्यों
सलाटपुर गांव के सरपंच जसूभाई पटेल से जब पूछा गया कि पटेल समृद्धि के बावजूद आरक्षण क्यों चाहते हैं? जवाब उनकी पुत्रवधु देती हैं. 12वीं पास अपनी भतीजी की तरफ इशारा करती हुई कहती हैं, “इसे मेडिकल में दाखिला नहीं मिला, डॉक्टर बनना चाहती थीं. आरक्षण की वजह से कम मेरिट वालों का दाखिला हो गया. हम अपने भविष्य के लिये आरक्षण मांग रहे हैं.” वह आगे कहती हैं कि, “महंगाई बढ़ रही है, हम खेती पर निर्भर हैं, हमारे उपज के दाम पर तो सरकार का कब्जा है, हम घर कैसे चलायें? घर चलाने के लिये परिवार में सरकारी नौकरी चाहिये.”
नर्मदा कैनाल का पानी पहुंचने के बाद गांव में समृद्धि
सलाटपुर गांव में ठाकोर भी हैं, यह और बात है कि समुदाय से अबतक कोई सरपंच नहीं चुना गया है. कुछ दलित परिवार भी हैं. साबरकांठा के जनजाति इलाकों से कुछ दर्जन भर परिवार यहां मजदूरी करने आये हैं जो खेतों में ही रहते हैं. वो यहां के वोटर नहीं हैं. पाटीदार परिवारों के घरों को देखकर उनकी समृद्धि का अंदाजा लगाया जा सकता है. गांव के सरपंच जासूभाई भी पाटीदार समुदाय से आते हैं. दो बार से लगातार सरपंच हैं. जसूभाई कहते हैं कि नर्मदा कैनाल का पानी पहुंचने के बाद गांव में समृद्धि आई है. वह बताते हैं, कि “10 साल पहले तक गांव की हालत कच्छ से बेहतर नहीं थी. नर्मदा का पानी गांव में पहुंचने के बाद यहां उपज बढ़ी है. अब तो खेडूत(किसान) भी कार से चलने लगे हैं. वह इसका क्रेडिट नरेंद्र मोदी सरकार को देते हैं.”
विधायक से खुश दिखे लोग
विधायक महेन्द्र सिंह बारेया के प्रति लोगों में नाराजगी नहीं हैं. इसकी वजह उनका मिलनसार स्वभाव है. गांव के महेन्द्र भाई पटेल बताते हैं कि उनसे मिलना आसान है. सलाटपुर के महेन्द्र भाई पटेल किसान हैं. सत्तारूढ़ दल से नाराज हैं. कहते हैं कि भाजपा ने वादा पूरा नहीं किया.
नौकरी नहीं मिली इसलिये खेती करते
रोजगार और खेती की उपज का सही दाम उन्हें भाजपा सरकार में नहीं मिल रहा है. उनकी नाराजगी की वजह ’पटेल-अनामत-आंदोलन’ नहीं है. महेंद्र बताते हैं, ”अनामत आंदोलन तो अब आया है. वह कहते हैं कि उन्होंने बी. कॉम किया हुआ है, नौकरी नहीं मिली इसलिये खेती करते हैं. उन्होंने कहा कि,“प्राइवेट कॉलेज में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिये उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ती है.
चुनाव में 10 घंटे बिजली पहले 8 घंटे
महेंद्र आगे कहते हैं कि “बीमा की रकम नहीं मिलती, केसीसी नहीं मिल रही है. उपज तो हुई है लेकिन भाव नहीं मिल पा रहा है.” कहते है कि चुनाव आने पर अब खेती के लिये 10 घंटे बिजली मिल रही है. पहले आठ घंटे की बिजली मिलती थी.
कड़वा जाति के हार्दिक को समर्थन
गांव के अश्विन बताते हैं कि अबतक वे हार्दिक के फैसले के इंतजार में ही हैं. गांव के ही एक अन्य बुजुर्ग बताते हैं कि आरक्षण के मुद्दे पर हम भाजपा से नाराज हैं. क्योंकि हमारे लड़कों को भी सरकारी नौकरी चाहिये. हार्दिक पटेल कड़वा उपजाति से आते हैं. गांव के सरपंच बताते हैं कि कड़वा जाति के ज्यादातर लोग हार्दिक पटेल की तरफ जायेंगे. वहीं, लिम्बा उपजाति पर पकड़ कम है. गांव में ज्यादातर कड़वा समुदाय के लोग ही हैं.