(गतांक से आगे…)
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“क्यों क्या”, सड़क पर काम कर रहे मजदूर और आस-पास के लोग कहते हैं, “पहाड़ काट के सड़क बनानी पड़ती है, सड़क के एक ओर पहाड़ रहता है और दूसरी और खाई. बारिश के चलते लैंड-स्लाइड्स होते ही रहते हैं. कभी खाई की तरफ वाली सड़क धसक जाती है तो कभी ऊपर से पहाड़ का टुकड़ा गिर पड़ता है और सड़क का सत्यानाश हो जाता है. जब तक वहां की ठीक हो तब तक दूसरी जगह की टूट जाती है. इसलिए टूटना-बनाना चलता रहता है.” ठीक तो है. हम हिमालय में भी मैदान की बुद्धि लगाने की कोशिश कर रहे हैं. पहाड़ में तो धैर्य चाहिए, मैदान की हड़बड़ी का यहाँ क्या काम. विनाश और निर्माण तो प्रकृति का सतत चलने वाला नियम है. हिमाचल में घुसते ही इसका तजुर्बा हो जाता है.
प्रदेश का ‘प्रवेशद्वार’ कहा जाने वाला सोलन जिला, पंजाब और हरियाणा की सरहद पर पड़ता है. इसे हिमाचल की औद्योगिक राजधानी भी कहा जा सकता है क्योंकि हिमाचल के कुल उद्योगों का लगभग तीन चौथाई सोलन जिले में ही है. उसमे भी परवानु और BBN कहे जाने वाला “बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़” का इलाका छोटे और मंझोले उद्योगों का मुख्य केंद्र है. इन्ही कारणों से राज्य सरकार ने यहाँ पर एक मिनी सचिवालय की जरुरत महसूस की, जिसका कुछ काम अभी बाकी है. मगर टूरिस्ट सर्किट में सोलन जाना जाता है चैल, बरोग और कसौली जैसे हिल स्टेशनों के लिए. अगर रोज़मर्रा की आपा-धापी और भाग-दौड़ से दूर, फुर्सत के दो-चार दिनों की तलाश हो तो कसौली चले जाइये. अंग्रेजी स्थापत्य में रचे-बसे इस छोटे से कस्बे में आकर ऐसा लगता है मानो वक़्त ठहर गया हो. यूँ “मशरूम सिटी” कहे जाने वाले सोलन का मशरूम भी काफी नाम कमा चुका है. इस स्वादिष्ट कुकुरमुत्ते की खेती में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने यहाँ मशरूम अनुसन्धान डायरेक्टरेट की स्थापना की है.
प्रदेश की राजनीति को फाइनेंस करने में अहम् भूमिका निभाने वाले सोलन जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं, पिछले चुनाव में इनमें से तीन भाजपा ने जीती थीं और दो कांग्रेस ने. सोलन के कांग्रेस विधायक, धनी राम शाण्डिल यूँ तो प्रदेश सरकार में मंत्री हैं, लेकिन स्थानीय लोगों की शिकायत है कि उनके मंत्री होने से जिले को कोई फायदा नहीं हुआ. “जिला अस्पताल में सोलन जिले के अलावा सिरमौर तक से मरीज आते हैं लेकिन डॉक्टरों की कमी है. मंत्रीजी को कई बार कहा पर अब तक हालत नहीं सुधरी”- ये शिकायत बार बार सुनने में आती है. दो ध्रुवीय राजनीति वाले हिमाचल प्रदेश में बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस की सरकारें बनती रही हैं. सामान्य लोगों से बात करके लगता है की इस बार भाजपा का पलड़ा भारी रह सकता है.
मौजूदा कांग्रेस सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी शिमला में और मुखर होकर सामने आती है. हमारे पहुँचने से एक दिन पहले ही शिमला में हड़ताल थी. इसी महीने कुछ अपराधियों ने एक नाबालिग छात्रा गुड़िया का अपहरण और गैंगरेप करके उसकी हत्या कर दी थी और राज्य पुलिस पर मामले में लीपापोती के आरोप लगे थे. बाद में जब कथित आरोपियों की गिरफ़्तारी के बाद उनमें से एक ही हत्या पुलिस थाने में ही हो गई तो लोगों के सब्र का बाँध टूट गया और जनता सड़कों पर उतर आई. आखिर में सरकार ने दोषी अधिकारियों को बर्खास्त किया और मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है.
शिमला के भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS) में फेलो समाजशात्री प्रो. आनंद कुमार मानते हैं की इस मसले पर सामने आया जन आक्रोश काफी स्वाभाविक है क्योंकि इस तरह के नृशंस अपराध हिमाचल जैसे शांत राज्य के लिए एकदम नए हैं. शहर की माल रोड पर बात-चीत के क्रम में वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन शर्मा कहते हैं कि इस पूरे मामले में CM वीरभद्र सिंह की किरकिरी हुई है, जिन्हें प्रशासन पर अपनी पकड़ के लिए जाना जाता था. पर कांग्रेस अगर मुसीबतों से गुजर रही है तो भाजपा में भी सब कुछ ठीक हो ऐसी बात नहीं. केन्द्रीय मंत्री जे पी नड्डा और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बीच की गुटबाजी चरम पर है, जिसका खामियाजा पिछले चुनाव में भी पार्टी को उठाना पड़ा था.
रात उच्च अध्ययन संस्थान के गेस्ट हाउस में बिताकर सुबह तडके हम मंडी के लिए निकल लेते हैं. पहाड़ों में तैरते बादलों की धुंध और देवदार-चीड़ के पेड़ों के बीच से गुजरती सर्पाकार सड़क आँखों के सामने एक रहस्यलोक सा रचे दे रही है.
(क्रमश:)