शिमला. अपनी कमाई का एक हिस्सा उन गरीब, असहाय और मजबूरी के बोझ तले दबे परिवारों पर खर्च करती है. खुद कमाती है और दूसरों को भी खुशियां बांटती है. बच्चों का उज्जवल भविष्य बनाने के लिए काम कर रही है निशा चौहान.
निशा शिमला के पास कसुम्पटी में रहने वाली हैं. मूल रूप से सिरमौर की रहने वाली निशा पिछले चार सालों से बच्चों के लिए खासकर गरीब मजबूर और किसी भी प्रकार से कुपोषण का शिकार हुए बच्चों के लिए कार्य कर रही है.
झुग्गी झोपड़ियों से लेकर मजदूरों के ढारों तक पहुंचकर ऐसे बच्चों की तलाश करना मानों उनका मकसद बन गया हो. दिन भर अपना काम करने के साथ ही जरूरतमंद बच्चों की तलाश कर मदद करना उनकी दिनचर्या का हिंसा है. वह न केवल बच्चों की मदद करती है बल्कि घरेलू हिंसा रोकने, बच्चों के माता-पिता और परिजनों की भी समय समय पर काउंसलिंग भी करती है.
सौ से अधिक बच्चों की मदद
बच्चों का स्कूलों में दाखिला स्वास्थ्य जांच, बच्चों को पढ़ने, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना उनके खानपान और कपड़ों की व्यवस्था करना निशा अपनी जिम्मेदारी समझती है. अब तक सौ से अधिक बच्चों का भविष्य संवारने में वह अपना अहम योगदान दे चुकी है.
पीड़ित बच्ची को किया एडॉप्ट
निशा चौहान का कहना है कि करीब चार साल पूर्व शिमला में ही एक मासूम बच्ची के साथ यौन शोषण की जानकारी उन्हें मिली. वह तुरंत मौके पर पहुंची और आरोपी को पुलिस के हवाले करने में मुख्य भूमिका निभाई. इस मामले में पुलिस भी न-नुकर कर मामले को दबाने की कोशिश कर रही थी.
उन्होंने स्थानीय लोगों, मीडिया और पुलिस और सरकार के आला अधिकारियों तक मामले को उठाया, महिला एवं बाल विकास विभाग सहित अन्य मोर्चो पर मामले को उठाकर आरोपी को सजा दिलवाने के लिए पूरा प्रयास किया. यही नहीं निशा ने यौन शोषण की शिकार हुई मासूम बच्ची को एडॉप्ट कर लिया.
उस बच्ची की शिक्षा, काउंसलिंग का जिम्मा आज भी उठा रही है. एक अच्छे स्कूल में प्रबंधन से बातचीत के बाद निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की और समय-समय पर मासूम की काउंसलिंग कर उसके मन में बैठे उस खौफनाक डर को हटाने के लिए प्रयासरत है.
निशा का कहना है कि उस घटना को चार साल बीत चुके है लेकिन मासूम आज भी उस हादसे को याद कर सहम उठती है. ऐसी घटनाएं समाज में आज भी हो रही है और इन घटनाओं को अंजाम देने वाले कोई अपने करीबी या परिचित ही पाए गए है.
इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया और फैसला किया कि इस तरह बच्चों पर अत्याचार न हो इसके लिए अकेले लड़ना तो मुमकिन नहीं लेकिन स्वयंसेवी संस्था बनाकर इस कार्य को किया जा सकता है. उन्होंने पखेरू एक पहल संस्था गठित कर कार्य करना शुरू किया.
पखेरु नाम से संस्था
संस्था के माध्यम से ही वह बच्चों से मिलकर उन्हें गुड और बैड टच के बारे में बताती है. बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती है और उनकी जरूरत के अनुसार उन्हें किताबें, कॉपियां, पेन, पेंसिल व कपड़ें उपलब्ध करवाती हैं. पखेरू एक पहल पखेरू नाम निशा के स्व. पिता का निक नेम था.
अपने पिता को समर्पित पखेरू एक पहल संस्था बच्चों, महिलाओं व समाज के पिछड़े तबके के उत्थान के लिए कार्यरत है. संस्था ने रक्तदान शिविर लगाकर भी जरूरतमंदों की सहायता की है.
शौकिया फोटोग्राफर से प्रोफेशनल फोटोग्राफर बनी निशा का कहना है कि अब वह फोटोग्राफी के शौकीन गरीब बच्चों को फोटोग्राफी के गुर भी सिखाएंगी, ताकि ऐसे बच्चे जीवनयापन के लिए इस कौशल को अपना सके.