कांगड़ा(नूरपुर). संतरे से पहचाना जाने वाला नूरपुर अब अपनी पहचान खोता जा रहा है. नूरपुर के क्षेत्र में किसी समय संतरे की भरपूर फसल होती थी और किसान संतरे की पैदावार से अच्छी खासी कीमत वसूल कर पूरे परिवार का पेट पालते थे. लेकिन अब संतरे की फसल दिन-प्रतिदिन खत्म होती जा रही है, जिस कारण किसान संतरे की फसल को उगाना नहीं चाहते.
सरकार को उठाना चाहिए ठोस कदम
किसान रामसबरूप शर्मा जो पेशे से किसान है उन्होंने संतरे की फसल की पैदावार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि नूरपुर की पहचान जो नूरपुर का संतरा था, उसको बचाने के लिए प्रदेश सरकार को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसान भी संतरे के पेड़ को लगाने में दिलचस्पी ले.
उन्होंने कहा कि संतरे की पैदावार के लिए किसानों को सिंचाई की समस्या आ रही है. रामसबरूप ने सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि प्रदेश सरकार किसानों को राशि का प्रावधान करवाए, ताकि नूरपुर संतरे की पहचान को खो ना दे.
बारिश की कमी से कम होती पैदावार
वहीं निशा ने बताया कि संतरे की फसल कमजोर हो रही है. संतरे की फसल कम होने के बहुत से कारण है, जैसे कि बारिश की कमी. संतरे की फसल के लिए नमी का होना बहुत जरूरी है, पर बिना बारिश के नमी का नामोनिशान भी नहीं है. ऊपर से भूमि का खनन इतना बढ़ गया है कि पानी का जो लेवल वह 10 फुट नीचे जा चुका है.
वहीं हिमाचल प्रदेश मंडी बोर्ड के निदेशक विकास चम्बयाल ने बताया कि नूरपुर का संतरा पूरे हिमाचल प्रदेश में मशहूर है. पिछली सरकारों ने जो कदम उठाना चाहिए था वह नहीं उठाया जिसके कारण संतरे का पेड़ मरने की कगार पर है.