कहते हैं कि इंसान को इंसान बनाने के पीछे गुरु का हाथ होता है. गुरु की तालीम ही समाज में अच्छे बुरे की पहचान कराने में मदद करती है. यही वजह है कि लोग अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल-कॉलेज में भेजकर तालीम दिलाना चाहते हैं. ताकि उनका बच्चा बहुत कुछ सीख सके.
लेकिन जब उसी तालीम हासिल करने वाली जगह पर कुछ दरिंदे मुंह बाये बैठे हों तो फिर बच्चे कहाँ जाएंगे और अगर वहां जाएंगे भी तो उनकी ज़हनियत पर क्या असर पड़ेगा.
गुरुग्राम के एक नामी स्कूल में जिस तरह से एक बस कंडक्टर ने यौन शोषण में विफल होने पर एक मासूम को बेरहमी से मौत के घाट उतर दिया, वह रूह कंपा देने वाला है. घर वाले तो अपने बच्चों को स्कूल प्रशासन के भरोसे स्कूल भेज देते हैं. बाकी वहां बच्चा क्या कर रहा है उसकी पूरी ज़िम्मेदारी स्कूल प्रशासन की होती है. लेकिन स्कूल प्रशासन भी इस मसले पर गोल मोल बातें ही करता रहा.
ऐसे जल्लाद हत्यारों को कड़ी से कड़ी सज़ा देना ज़रूरी हो जाता है ताकि ऐसी गिरी मानसिकता के लोगों के लिए यह एक नज़ीर बन सके और भविष्य में तालीम की इस पाक जगह पर कोई भी ऐसी घिनौनी हरकत करने से पहले सौ मर्तबा सोचे.
वहीं, मारे गए बच्चे की मां अभी तक इस सदमे से ख़ुद को उबार नही पा रही है. वह अपने मासूम बेटे को याद करते ही बेहोश हो जाती है. ज़ाहिर सी बात है कि किसी के कलेजे का टुकड़ा स्कूल पढ़ने जाए और उसके वापस आने के बजाय ऐसी दिल को चीर देने वाली ख़बर आए तो परिवार वालों पर क्या गुज़रेगी यह महसूस किया जा सकता है.
इससे पहले पाकिस्तान के एक स्कूल में भी ऐसा ही दर्दनाक मंज़र देखने को मिला था, जब कई बच्चे आतंकियों की गोली के शिकार हुए थे. इसके अलावा भी शिक्षकों की तरफ़ से बेरहमी से पिटाई के मामले भी लगातार ख़बरों में आते रहते हैं. इन सब माहौल के बीच बच्चा स्कूल कैसे जाए और अगर जाए भी तो उसकी मानसिकता पर क्या असर पड़ेगा? क्या वो वही सब सीखेगा जिसे सिखाने के लिए माँ-बाप अपने मेहनत की कमाई पानी की तरह बहाने में भी कोई कसर नही छोड़ते.
इंसान इतना कैसे गिर सकता है कि उसे बच्चों के मासूम से चेहरों पर भी तरस नही आता. वाकई में स्कूल में हुई हत्याएं सिर्फ़ मासूमों की हत्या भर नही है बल्कि यह उस देश के भविष्य की भी हत्या है.
फिर कहूँगा कि इन्हें कतई हल्के में न लिया जाए. ऐसे लोग पूरी इंसानियत के लिए बदनुमा दाग़ हैं.