जुलाई के महीने में पहाड़ पर जाने का मौका किसी अनचाहे वरदान सा है, इसलिए जब हिमाचल दौरे की योजना बनी तो मना करने का सवाल ही नहीं था. तयशुदा दिन निकलते-निकलते दोपहर हो गई. रास्ते भर कांवड़ियों के लिए बनाये गए अस्थायी डेरों को उजड़ते देख याद आया कि श्रावण की शिवरात्रि एक दिन पहले ही संपन्न हुई है, नहीं तो रास्ते जाम होते और यात्री परेशान. गर्मी में दिल्ली में होने वाली दुर्गति तो जगत विख्यात है, लेकिन हिमाचल की तलहटी में बसे पंचकुला तक गर्मी का प्रकोप जारी रहा. रात वहीँ रुकना था.
रात को हुई बारिश ने जुलाई की तपिश को जैसे धो-पोंछ दिया. सुबह सोलन के रास्ते शिमला को निकले तो बरसात में धुले हरे भरे पहाड़ों को देखकर दिल जुड़ गया. राहुल संकृत्यायन और कृष्णनाथ के यात्रा संस्मरणों को पढ़ते हुए इस इलाके से एक आत्मीयता सी हो गई थी, आज उसी सपने को जी लेने का मौका था. हिमगिरी के धवल, हिमाच्छादित शिखरों को तो शायद कारोबारी व्यस्तताओं के चलते न देख पायें, पर हिमाचल से, हिमालय से परिचय तो हो ही रहा है. वही क्या कम है सो उसका ही आनंद ले रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश की राजनीति हिंदी पट्टी के अन्य प्रदेशों जितनी पेचीदा और उलझाऊ नहीं है. कुल 12 जिले हैं और 68 विधानसभा सीटें, जो तीन प्रशासनिक क्षेत्रों- कांगड़ा (पश्चिमी), मंडी (केन्द्रीय) और शिमला (पूर्वी) में बंटे हुए हैं. नक़्शे पर ये तीनो प्रशासनिक क्षेत्र उत्तर से दक्षिण के बीच सीधी, या थोड़ी तिरछी पड़ी पट्टियों से मालूम पड़ते हैं. उत्तरी सीमान्त के जिलों यानि किन्नौर, लाहौल-स्पीती और चंबा का सामरिक-सांस्कृतिक और आर्थिक महत्त्व चाहे जो हो, पर तीनों जिलों में जोड़कर ७ ही सीटें बनती हैं, यानि प्रदेश का राजनैतिक भविष्य यहाँ से तय नहीं होता.
इस लिहाज से सबसे ज्यादा भारी पड़ते हैं काँगड़ा (15 सीटें) और मंडी (10 सीटें) जिले, क्योंकि राज्य के कुल विधायकों का तिहाई से भी ज्यादा यहीं से चुन के जाता है. सिर्फ एक ही जिला है जहाँ से इनके प्रभुत्व को चुनौती मिलती है, और वो है शिमला. आठ विधानसभा सीटों वाला शिमला जिला सिर्फ विधायको की संख्या के मामले में ही नहीं, बल्कि एक और मामले में भी प्रदेश की राजनीति में अहम् भूमिका अदा करता है. मूलतः दो पार्टियों- भाजपा और कांग्रेस के इर्द गिर्द घूमने वाली हिमाचल की राजनीति में जहाँ भाजपा हमेशा अन्य जिलों के नेताओं को मुख्यमंत्री बनाती रही है वहीँ कांग्रेस ने हमेशा शिमला जिले के व्यक्ति को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी है. किन्नौर से सटे रामपुर बुशहर रियासत के महाराजा, 6 बार के मुख्यमंत्री और वर्त्तमान सीएम वीरभद्र सिंह अभी भी शिमला ग्रामीण की सीट से ही विधायक हैं.
सोलन का रास्ता जर्जर है, राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद टूटा-फूटा है, कई जगह काम जारी है. पूछने पर पता चलता है की अमूमन हमेशा ऐसा ही हाल रहता है.
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