मंडी. मंडी जिले में 1985 से 1990 तक जिला भाषा अधिकारी के पद पर रहते हुए जिले को नई सांस्कृतिक पहचान देने वाले डॅा विद्या चंद ठाकुर नहीं रहे. सोमवार की रात पीजीआई में उनका निधन हो गया.
हाल ही में अस्वस्थ होने पर उन्हें सोमवार को ही कुल्लू से पीजीआई चंडीगढ़ ले जाया गया था. वह 64 वर्ष के थे. उनके निधन से समस्त सांस्कृतिक जगत शोक में डूब गया है.
मंडी की संस्कृति को दिलायी पहचान
डॉ. विद्या चंद ठाकुर भाषा विभाग से उपनिदेशक पद से वर्ष 2011 में सेवानिवृत हुए थे. वह भाषा अकादमी के सचिव भी रहे. सेवानिवृत होने के बाद वह लगातार हमीरपुर के नेरी स्थित ठाकुर जगदेव चंद शोध संस्थान में सक्रिय रूप से कार्य करते रहे.
मंडी में रहते हुए उन्होंने स्नोर, मंडी सराज, जोगिंदरनगर, करसोग, बदार समेत जिले के हर क्षेत्र में स्थानीय कलाकारों व
वेष-भूषा पर आधारित सांस्कृतिक दल तैयार करवाए व उन्हें राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया. प्रख्यात कला संस्था मांडव्य कला मंच के गठन व लुड्डी को देश-विदेश में प्रख्यात करने में भी डॉ, विद्या चंद का ही योगदान रहा है. मंडी में हिमाचल दर्शन फोटो गैलरी की स्थापना में भी उनका खास योगदान रहा है.
लेखन का सफर
वह चंबा, मंडी, सिरमौर, कुल्लू आदि जिलों में भाषा अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे. चंबा में रहते हुए उन्होंने सुनयना पुस्तक का प्रकाशन किया तो मंडी में रहते हुए मांडव प्रभा पुस्तक निकाली. पराशर पर भी उन्होंने पुस्तक निकाली थी. उन्होंने पुरातत्व संरक्षण के लिए काफी कार्य किया. वह सांस्कृतिक लेखन में कई समाचार पत्रों में स्तंभ लेखक भी रहे. शिमला में रहते हुए भी उन्होंने शब्द उत्पति समेत कई पुस्तकों को लेखन कार्य किया.
कुल्लू के बदाह में अंतिम संस्कार
वह कुल्लू जिले की महाराजा घाटी के गांव खोड़ा आघे के रहने वाले थे। उन्होंने पीएचडी कर रखी थी तथा ठेठ ग्रामीण व्यक्तित्व थे। एक साधारण परिवार में रहते हुए वह उच्च पद तक पहुंचे। उनके निधन पर मंडी की सभी सांस्कृतिक संस्थाओं ने गहरा शोक जताया है. इसे सांस्कृतिक व शोध जगत के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है। उनका अंतिम संस्कार कुल्लू के बदाह गांव में संपन्न हुआ. मौके पर सैकड़ों लेखकों, साहित्यकारों और संस्कृति प्रेमियों ने अपनी श्रद्धांजलि दी।