चिंतपूर्णी(ऊना). गेहूं रबी की प्रमुख फसल है, जो किसानों की आर्थिक रीढ़ भी मानी जाती है. जिला ऊना में गेंहू की फसल का उत्पाद बड़े स्तर पर किया जाता है. यहां के किसान आलू की फसल के बाद गेहूं की फसल पर ही ज्यादा निर्भर है. कृषि प्रधान जिला ऊना में हर साल 29 हजार हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की फसल की बिजाई के जाती है. जिससे 16 हजार टन गेहूं का उत्पाद किया जा है. लेकिन, इस बार मौसम की बेरुखी के कारण गेहूं की फसल पीला रतुआ रोग की चपेट में आना शुरू हो गई है.
गेंहू के पौधों के पत्ते धीरे-2 पीले होने शुरू
ऐसे में गेहूं की अच्छी पैदावार को लेकर किसानों की चिंताए बढ़ने लगी है. इन दिनों मौसम में आए बदलाव के कारण पीला रतुआ के रोग का असर गेहूं की फसल हो रहा है. किसान सुभाष चंद, बाबु राम, जसवंत, प्रमोद कुमार, नरिंद्र सिंह व इसमाइल मुहम्मद ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से गेंहू के पौधों के पत्ते धीरे-2 पीले होने शुरू हो गए हैं. इससे साफ़ जाहिर हो रहा है कि गेहूं की फसल रतुआ रोग की चपेट में आना शुरू हो गई है. उन्होंने कृषि विभाग से किसानों को रतुआ रोग की रोकथाम के लिए सही जानकारी उपलब्ध करवाने की मांग उठाई है. उनका कहना है कि अभी पीला रतुआ शुरूआती दौर पर है. अगर इसकी समय रहते रोकथाम कर ली जाती है तो जिले में गेहूं की फसल की अच्छी पैदावार हो सकती है.
वहीं, कृषि जानकारों के अनुसार पीला रतुआ रोग फसलों की पैदावार के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता को अधिक प्रभावित करता है. कई बार गेहूं के पौधों के पीला होने के दुसरे भी कारण होतें है. जिसमे भूमिगत पानी में नमक की मात्रा अधिक होना, खेत का लम्बे समय तक गीला रहना या दो से अधिक खरपतवार नाशकों को मिलाकर उनका छिडकाव करने से भी गेहूं के पत्ते पीले हो जाते हैं. ऐसे में किसान पीला रतुआ रोकने वाली दवा का छिड़काव न करें, ऐसे में गेहूं की फसल पर तीन फीसदी यूरिया और 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए.
रोग के लक्षण व पहचान
-पत्तों का पीला होना ही पीला रतुआ नहीं कहलाता, बल्कि पाउडर नुमा पीला पदार्थ हाथ पर लगना इसका लक्षण है.
-पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग की धारी दिखाई देती हैं, जो धीरे-धीरे पूरी पत्तियों को पीला कर देती हैं.
-पीला पाउडर जमीन पर भी गिरा देखा जा सकता है.
-रोग प्रभावित फसल के खेत में जाने पर कपड़े पीले हो जाते हैं तथा छूने पर पाउडर नुमा पीला पदार्थ हाथों में लग जाता है.
-पहली अवस्था में यह रोग खेत में 10-15 पौधों पर एक गोल दायरे के रूप में शुरू होकर बाद में पूरे खेत में फैल जाता है.
-तापमान बढ़ने पर पीली धारियां पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग में बदल जाती हैं.
रतुआ की रोकथाम के उपाय
-रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मि.ली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. को 200 लीटर पानी या डाइथेन एम-45, 400 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़कें.
-क्षेत्र के लिए सिफारिश की गई रोग रोधी किस्में ही लगाएं तथा बुआई समय पर करें.
-खेत का निरीक्षण ध्यान से करें, विशेषकर वृक्षों के आस-पास उगाई गई फसल पर अधिक ध्यान दें.
-रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतर पर करें.
अम्ब में कृषि विभाग में विषय वाद विशेषज्ञ वाईएस गुलेरिया ने कहा कि इन दिनों में इस रोग का प्रकोप गेहूं की फसल पर काफी बढ़ जाता है, इसलिए इस रोग की सही पहचान करके उचित रोकथाम जरूरी है. कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करते समय विशेषज्ञों की सलाह जरूर लें. मौसम साफ हो तभी छिड़काव करें तथा पानी व दवा की सही मात्रा इस्तेमाल करें.